कोटद्वार: घर के आंगन से विलुप्त होती गौरैया पक्षी के संरक्षण के लिए गणित के एक शिक्षक दिनेश कुकरेती और उनका परिवार पिछले 26 वर्षों से काम कर रहे हैं. शिक्षक दिनेश के घर- आंगन और पड़ोसियों के घरों पर लगभग 500 नेस्ट बॉक्स लगाये गये हैं. गौरैया पक्षी के लिए सेफ नेस्ट बॉक्स में सैकड़ों गौरैया के परिवार रह रहे हैं. अब तक उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ समेत अन्य राज्यों में 1900 से अधिक जालीदार नेस्ट बॉक्स दिनेश अपने हाथों से लगा चुके हैं.
26 वर्षों से कर रहे हैं यह नेक काम:शिक्षक दिनेश पिछले 26 वर्षों से विश्व गौरैया दिवस पर पक्षी बचाओ दिवस के रूप में जागरूकता गोष्ठी का आयोजन कर लोगों को निशुल्क सेफ नेस्ट वितरण करते हैं. सर्वे के मुताबिक 2008 में 3000 गौरैया कोटद्वार क्षेत्र में देखी गई थी. 2022 में गौरैया की संख्या 18,000 हो गई है. कोटद्वार क्षेत्र में नर गौरैया की संख्या अधिक है. दिनेश इस क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों को 8000 कृत्रिम नेस्ट वितरण कर चुके हैं. 2008 से 2022 तक 200 स्थानों पर जा कर सर्वे किया है. वहीं कोटद्वार से लगे लैंसडाउन वन प्रभाग में पक्षियों के लिए स्वस्थ वातावरण है. जिसमें 600 से अधिक पक्षी वास करते हैं. लेकिन गौरैया पक्षी अधिकांश समय मानव प्रेमी होने के कारण घर के आंगन में फुदकती हैं.
शिक्षक होने के साथ ही करते हैं पक्षियों के संरक्षण का काम: कोटद्वार नंदपुर निवासी दिनेश कुकरेती पेशे से राजकीय इंटर कॉलेज में गणित के शिक्षक हैं. पिछले 26 वर्षों से शैक्षणिक कार्य के साथ पक्षी बचाओ अभियान के लिए समर्पित हैं. गणित के साथ पक्षी संरक्षण के लिए समर्पण भाव घर से ही मिला. नंदपुर के अपने घर में 26-27 वर्ष पूर्व घायल गौरैया को देखकर मन में यह भाव उत्पन्न हुआ कि पक्षियों के लिए जीवन समर्पित करना है. तब से लेकर अब तक शैक्षणिक कार्य के साथ जो समय मिलता है उसमें पक्षी संरक्षण के लिए काम करते हैं.
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स्वयं के पैसे करते हैं खर्च: स्वयं के पैसों से प्लाईबोर्ड लाकर जालीदार सेफ नेस्ट तैयार करते हैं. नेस्ट बनाने के काम में पत्नी भी पूर्ण सहयोग करती हैं. गणित शिक्षक दिनेश ने बताया कि देश में गिद्ध पक्षी भी विलुप्ति की कगार पर हैं. 2010 से गिद्ध पक्षी संरक्षण के लिए भी कार्य कर रहे हैं. रिखणीखाल क्षेत्र के द्वारी गांव के आस-पास गिद्ध का विशाल घरौंदा बना चुके हैं. जिसमें अब तक सैकड़ों गिद्ध परिवेश करते देखे गए हैं. शिक्षक दिनेश ने बताया कि पक्षियों का संरक्षण करने के लिए फायर सीजन में जंगलों में आग न लगे तभी पक्षियों को बचाया जा सकता है. जंगलों में वनाग्नि की घटनाओं से पक्षियों के अंडों में अजन्मे बच्चे और घोंसलों में नवजात नष्ट हो जाते हैं. आग की घटनाओं से जंगल में हरी और सूखी पत्तियों से वातावरण प्रदूषित होने से पक्षियां विलुप्त हो रही हैं.