कोटद्वारः संसदीय चुनाव के इतिहास में गढ़वाल लोकसभा सीट 1982 में दुनिया की नजरों का केंद्र बन गई थी. इस चुनाव में सत्ता का दुरुपयोग भी देखा गया तो मतदाता की ताकत का एहसास भी गढ़वाल सीट ने दुनिया को कराया था. वर्ष 1980 में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे. केंद्रीय मंत्रिमंडल का गठन हुआ था, लेकिन इससे पहले ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व गढ़वाल सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच खटपट शुरू हो गई थी. उस दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से नाराजगी के चलते कांग्रेस पार्टी व संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
बहुगुणा के इस्तीफे के बाद गढ़वाल संसदीय सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर दोबारा से वर्ष 1982 में उपचुनाव हुआ, तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने जीत के लिए गढ़वाल लोकसभा सीट पर अपनी ताकत झोंक दी थी. पहली बार संसदीय चुनाव के इतिहास में यह सीट दुनिया की नजरों में आई थी. उपचुनाव पूरी तरह इंदिरा बनाम 'पहाड़' हो गया था.
उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी हेमवती नंदन बहुगुणा ने भारी मतों से कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रमोहन सिंह नेगी को हराकर जीत हासिल की थी. 1982 के उपचुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा ने एक अपना यादगार भाषण दिया था. उन्होंने कहा था कि इंदिरा मुझे जीतने नहीं देंगी और गढ़वाल की जनता मुझे हारने नहीं देगी. उनके इस बयान ने पहाड़ की पूरी राजनीति की दिशा और दशा को ही बदल डाला था और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को भारी मतों से हराकर गढ़वाल संसदीय सीट पर जीत हासिल की थी.