पौड़ी: कहते हैं कि पहाड़ का पानी और जवानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती लेकिन इन्हीं कहावतों के बीच खड़ी है पौड़ी जिले के कठूड़ गांव की कौशल्या देवी. 42 बसंत देख चुकी कौशल्या पहाड़ के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है. अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए कौशल्या देवी पिछले 11 सालों से बंजर खेतों में 'सोना' उगा रही है. कई गांवों के बंजर खेतों को वह अकेले ही जोत कर उपजाऊ कर चुकी हैं.
बंजर खेतों को कर रहीं उपजाऊ दरअसल, 11 साल पहले पति के गुजर जाने के बाद कौशल्या देवी के कंधों पर चार बच्चों का जिम्मा आ गया था. लेकिन हार मानने के बजाय कौशल्या देवी ने बच्चों को पालकर मां की भूमिका भी निभाई और बाहर काम करके बच्चों के लिए पिता का फर्ज भी पूरा किया. आज भी उनमें वही जोश है जो 11 साल पहले हुआ करता था.
बंजर खेतों को कर रहीं उपजाऊ कौशल्या देवी की दिनचर्या
कौशल्या देवी तड़के 4 बजे घर से निकल जाती हैं और रात 9 बजे तक ही अपने बच्चों के पास घर पहुंच पाती हैं. कौशल्या देवी की ईमानदारी, जुनून और मेहनत के चलते कई लोग अपने खेतों को जोतने के लिए उन्हें बुलाते हैं. लेकिन समय की कमी के चलते वो चाहकर भी सब जगह नहीं जा पातीं. खेत जोतने के साथ ही वो गांव में मेहनत मजदूरी भी करती है, ताकि बच्चों के पालन-पोषण में कोई कमी न हो.
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गांव की एक स्थानीय महिला सरिता नेगी ने बताया कि कौशल्या देवी की मेहनत और जज्बा पूरे क्षेत्रवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत है. परिवार के मुख्य सहारे के जाने के बाद उन्होंने अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम किया और अपने बच्चों को किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने दी. उन्होंने बताया कि कौशल्या के काम से लोग इतने खुश हैं कि सभी लोग उन्हें ही अपने बंजर खेतों को जोतवाने के लिए बुलाते हैं.
अपनी मिट्टी, गांव के सुकून को साफ हवा को छोड़कर मैदानी शहरों में पलायन करती युवा पीढ़ी के सामने आज 15 से 20 हजार रुपये महीना कमाने वाली 'हलधर' कौशल्या देवी प्रेरणा स्नोत है. एक बड़ा उदाहरण हैं, जो अपनी मिट्टी में रहकर ही कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए जिंदगी जीने का नया तरीका सिखा रही है. साथ ही बंजर खेतों को लहलहा रही है.