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35 नरभक्षी को ढेर करने वाले शिकारी जॉय बोले- गुलदार को मारने के लिए बनना पड़ता है उससे भी होशियार

उत्तराखंड में समय-समय पर गुलदार के हमलों की घटनाएं सामने आती रहती हैं. लेकिन इस सब से इतर आदमखोर को मारने के लिए एक शिकारी को किस चुनौंतियों से जूझना पड़ता है, इसके बारे में शिकारी जॉय हुकिल ने ईटीवी भारत से खास बात की.

जॉय हुकिल.

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Published : Nov 12, 2019, 11:27 AM IST

Updated : Nov 12, 2019, 12:39 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड में समय-समय पर गुलदार के हमले की घटनाएं सामने आती रही हैं. वहीं गुलदार के हमले में कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं. लेकिन इस सब से इतर आदमखोर को मारने के लिए एक शिकारी को किस चुनौंतियों से जूझना पड़ता है, इसके बारे में शिकार जॉय हुकिल ने विस्तार से बात की.

आदमखोर गुलदार को मारने के बाद जॉय हुकिल.

गौर हो कि पौड़ी में भी अभी तक 11 घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें चार लोगों की मौत हो चुकी है. गुलदारों के हमले की घटनाओं के पीछे के कारणों और शूटरों के सामने आने वाली चुनौंतियों के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत संवाददाता के साथ शूटर जॉय हुकिल ने विस्तार से बात की. बताचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे साल 2007 से जनसेवा के लिए गुलदार का अंत करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने अभी तक 35 नरभक्षी गुलदार को ढेर किया है.

जानकारी देते शिकारी जॉय हुकिल.

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उन्होंने कहा कि जब भी गुलदार किसी व्यक्ति पर आक्रमण करता है तो उसके परिजनों और क्षेत्रीय लोगों के आक्रोश को संभालना मुश्किल हो जाता है. जिसके बाद उसे शूट करने के आदेश मिलते हैं. उन्होंने बताया कि इसके पीछे भी दो कारण देखने को मिलते हैं. यदि नरभक्षी गुलदार को नहीं मारा जाता है तो अधिकांश क्षेत्रों में गुलदार को मारने के लिए जहर का प्रयोग किया जाता है, जिससे कि विभिन्न जानवर भी इस जहर की चपेट में आ जाते हैं. लेकिन उनकी ओर से जब गुलदार को ढेर किया जाता है तो उसमें सिर्फ एक ही जानवर ढेर होता है.

आदमखोर की तलाश करते जॉय हुकिल.

गुलदार एक प्राकृतिक शिकारी है और उसका शिकार करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है. प्राकृतिक शिकारी को ढेर करने के लिए उससे भी अधिक होशियार बनकर शिकार किया जाता है. उनके सामने काफी चुनौतियां आती हैं, लेकिन इंसानों को इसके आतंक से बचाने के लिए उन्हें इन संघर्षों से गुजर कर उसे ढेर करना होता है. उन्होंने बताया कि आज गुलदार के बढ़ते आतंक के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि उत्तराखंड में गुलदार के लिए कोई नियमावली नहीं बनी है.

उनकी संख्या का आंकड़ा किसी के पास नहीं है. आज उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है और जंगलों में उनके लिए पर्याप्त भोजन नहीं है. भूख को मिटाने के लिए मनुष्य एक सरल और आसान भोजन है, यही कारण है कि वह जंगलों से आबादी वाले क्षेत्रों में आ रहे हैं और मनुष्यों पर आक्रमण कर रहे हैं.

Last Updated : Nov 12, 2019, 12:39 PM IST

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