कोटद्वार: प्रदेश में बढ़ता प्रदूषण लोगों और पर्यावरण के लिए खतरनाक बनता जा रहा है. जिसको देखते हुए 14 सितंबर 2014 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने लोगों की समस्याओं पर विचार करते हुए हरित कानून में संशोधन करने का निर्णय लिया था. मंत्रालय से इस फैसले से प्रकृति प्रेमियों में पर्यावरण संरक्षण की उम्मीद जागी थी. सूबे में कई कंपनियां ऐसी हैं जो नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ा रही हैं. वहीं वन मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.
उल्लेखनीय है कि सिडकुल क्षेत्र में कंपनियों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण इस तरह हो रहा है कि लोगों का जीना दूभर हो गया है. जिसका उदाहरण कोटद्वार जशोधरपुर, सिगड़डी और बलभद्रपुर सिडकुल हैं. जहां धुएं से स्थानीय लोग बीमार हो रहे हैं. वहीं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ते हुए प्रदूषण को देखते हुए सिडकुल के आसपास की भूमि पर ग्रीन बेल्ट बनाने का प्रावधान बनाया था. लेकिन ग्रीन बेल्ट न बनने से कंपनियों के आसपास लगातार प्रदूषण से पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है. वहीं इस मामले में वन मंत्री हरक सिंह रावत ने सख्त टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.
उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी दबाव में कार्य नहीं कर रही है. चाहे कितने ही बड़े ग्रुप और बड़े उद्योगपति की फैक्ट्री क्यों न हो प्रदूषण करने वालों से सरकार किसी प्रकार का कॉम्प्रोमाइज करने को तैयार नहीं है. वहीं सिडकुल के क्षेत्रीय प्रबंधक केएन नौटियाल ने कहा कि हर बैठक में फैक्ट्री प्रबंधकों को नोटिस जारी किया जाता है और फैक्ट्री के आसपास ग्रीन बेल्ट बनाने के लिए लगातार कहा जा रहा है. बताते चलें कि पर्यावरण कानूनों और नीतियों में कोई सख्त पैरामीटर नहीं होने के कारण ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं. मापदंडों के अनुरूप नहीं होने वाले उद्योग और कारखानों को भी एनओसी को नवीनीकृत कर दिया जाता है.
प्रदूषण से लोगों का जीना हुआ दूभर.. गौर हो कि जशोधरपुर सिडकुल 80 एकड़ के लगभग की भूमि पर स्थापित है. 80 एकड़ की भूमि पर कहीं पर भी फैक्ट्रियों के अलावा ग्रीन बेल्ट नहीं दिखाई देती. जबकि हर फैक्ट्री के आगे और आसपास ग्रीन बेल्ट होना अनिवार्य होता है. प्रदूषण के खिलाफ स्थानीय लोग रोजाना सड़कों पर उतरते रहते हैं लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. जिससे लोगों में खासा रोष है.
वहीं पर्यावरण प्रेमी जगत सिंह कहना है कि हमें विकास के साथ ही पर्यावरण को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि विकास और पर्यावरण में सामंजस्य होना बहुत जरूरी है. अगर हमें हिमालय और ग्लेशियर को बचाना है तो बढ़ते प्रदूषण को रोकना आवश्यक है. साथ ही गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जैविकता को बढ़ाना होगा.