श्रीनगरःपहाड़ों की आबोहवा में भी प्रदूषण की मात्रा में तेजी से इजाफा हो रहा है. इन सबके बीच एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. वैज्ञानिकों की मानें तो अब पहाड़ों में हो रही बारिश भी यहां की नदियों को प्रदूषित कर रही है. वर्षा जल में हानिकारक रासायनिक तत्व मिले हैं, जो सीधे नदी-नालों के पानी को दूषित कर रहे हैं. यह तथ्य गढ़वाल विवि और आईआईटीएम के शोध में सामने आया है. जो बेहद चिंता का विषय है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, वर्षा जल में कैल्शियम, सल्फेट और नाइट्रेट जैसे रासायनिक अम्ल की अधिकता चिंता का विषय है. इन अम्लों से हिमालयी क्षेत्रों का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर (HNB Garhwal University) और भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के प्रारंभिक शोध के नतीजों में अलकनंदा घाटी में वर्षा जल में हानिकारक रासायनिक तत्वों का पता चला है.
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वर्षा जल के 27 नमूनों का आयन क्रोमैटोग्राफी के जरिये किया गया अध्ययन
एचएनबी गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञान के सहायक प्रो. डॉक्टर आलोक सागर गौतम, शोध छात्र राजीव कुमार और आईआईटीएम के डॉ. सुरेश तिवारी ने शोध के दौरान वर्षा जल के 27 नमूने लिए. इन नमूनों का आयन क्रोमैटोग्राफी (Ion chromatography) के जरिये अध्ययन किया गया.
वर्षा जल में मिली ph की मात्रा 5.1 से 6.2
अध्ययन में पता चला कि बारिश के पानी में पीएच की मात्रा 5.1 से 6.2 मिली. जो बताता है कि बारिश का पानी अम्लीय है. डॉ. गौतम की मानें तो पानी में रासायनिक अध्ययन करते हुए देखा गया कि केटाइंस में कैल्शियम और एनाइंस में क्लोरीन सबसे अधिक मिला है. जबकि अम्लीय प्रवृत्ति के सल्फेट और नाइट्रेट का सांद्रण 40 से 60 प्रतिशत मिला है. जो पहाड़ों के पानी के लिए बेहद घातक है.
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क्या है पीएच (ph) मान
पीएच का पूरा नाम पावर ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति है. हाइड्रोजन के अणु किसी भी वस्तु में उसकी अम्लीय या क्षारीय प्रवृत्ति को तय करते हैं. जैसे अगर घोल या उत्पाद में पीएच 1 या 2 है तो वो अम्लीय है. जबकि, पीएच 13 या 14 है तो वो क्षारीय है. अगर पीएच 7 है तो वह न्यूट्रल है. पानी का पीएच 7 होता है, यानी कि पानी में अम्ल और क्षार दोनों ही नष्ट हो जाते हैं.
अम्लीय वर्षा
वर्षा जल में अम्लों की बड़ी मात्रा को या उपस्थिति को अम्लीय वर्षा कहा जाता है. वायुमंडल में व्याप्त प्रदूषण के कण व गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड जल से मिलने पर कार्बनिक एसिड में तब्दील हो जाता है. जबकि, कई गैसें वायुमंडल में पहुंचकर जल से रासायनिक क्रिया करके सल्फेट और सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्माण करती हैं. जब यह अम्ल, वर्षा के साथ धरातल पर पहुंचता है तो इसे अम्ल वर्षा कहते हैं. जो हानिकारक होता है.
डॉ. गौतम बताते हैं कि पानी की रासायनिक संधि का अध्ययन करते हुए देखा गया कि केटाइंस (धनात्मक विद्युत चार्ज वाले आयन) में कैल्शियम और एनाइन (ऋणात्मक आयन) में क्लोरीन सबसे अधिक मिला है. जबकि, अम्लीय प्रवृत्ति के सल्फेट और नाइट्रेट का सांद्रण 40 प्रतिशत और इससे अधिक मिला है. जिससे सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड बन रहे हैं. वातावरण में केटाइंस और एनाइंस की जितनी ज्यादा मात्रा होगी, तत्व उतना ज्यादा रासायनिक समीकरण बनाएंगे.
हानिकारक तत्व नदी-नालों के पानी में मिलकर पारिस्थितिकी तंत्र पर डाल रहे बुरा असर
डॉ. गौतम का कहना है कि बारिश होने पर यह हानिकारक तत्व नदी और नालों के पानी के साथ मिल जाते हैं. यह रासायनिक तत्व मानवजनित और प्राकृतिक गतिविधियों से उत्सर्जित होते हैं. मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर यह बुरा प्रभाव डालते हैं. इनकी वृद्धि पेड़-पौधों, जलीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के लिए हानिकारक है.
वहीं, मनुष्यों में ये चर्म रोग की उत्पत्ति कर सकते हैं. पुराने वाहनों को चलाने और कचरा जलाने से जो हानिकारक धुआं निकलता है, वह वायु की गुणवत्ता पर बुरा असर डालता है. जब बारिश होती है तो यह हानिकारक तत्व पानी में मिल जाते हैं.
ऐसे होगा वर्षा जल शुद्ध
- वाहनों की संख्या पर लगाम.
- वनों के संरक्षण पर जोर.
- प्लास्टिक समेत अन्य कचरा जलाने पर रोक.
- हिमालयी क्षेत्रों में वैज्ञानिक पहलुओं को देखते हुए मानवीय गतिविधियों की मिले इजाजत.
- वायु प्रदूषण पर सख्ती से रखी जाए नजर.