श्रीनगर:पहाड़ के दर्द 'पलायन' पर बनी फिल्म 'एक था गांव' मुंबई अकेडमी ऑफ मूविंग इमेज फील (मामी) महोत्सव इंडिया गोल्ड श्रेणी के लिए नामित की गई है. फिल्म को क्रिटिक्स ने काफी सराहा है. 'एक था गांव' फिल्म का निर्माण सृष्टि लखेड़ा ने किया है. एक घंटे की इस फिल्म में पहाड़ों पर खाली पड़े गांवों और उससे जुड़े दर्द को पर्दे पर उतारा गया है. फिल्म हिंदी और गढ़वाली बोली में बनाई गई है.
19 साल की गोलू भी है फिल्म में मुख्य किरदार. मूलरूप से कीर्तिनगर ब्लॉक की सिमली गांव निवासी सृष्टि ने 'एक था गांव' फिल्म का निर्माण पावती शिवापालन के साथ मिलकर किया है. सृष्टि का परिवार वर्तमान में ऋषिकेश में रहता है लेकिन उनकी जड़े आज भी पहाड़ पर ही बसती हैं. यही वजह रही कि सृष्टि ने पहाड़ के इतने संवेदनशील विषय को पर्दे पर उतारा है.
सृष्टि पिछले 10 सालों से फिल्मी दुनिया से जुड़ी हैं. सृष्टि पिछले 10 सालों से फिल्मी दुनिया से जुड़ी हैं. उन्होंने अपनी इस फिल्म से उत्तराखंड में पलायन की समस्या को पर्दे पर बेहतर ढंग से उतारा है, जिसके कारण फिल्म को मामी महोत्सव में जगह मिली और फिल्म को गोल्ड श्रेणी में रखा गया.
अपने परिवार के साथ सृष्टि लखेड़ा. यह भी पढ़ें-मसूरी में 100 साल पहले आई थी कार, जिसे देखने उमड़ी थी भीड़
सृष्टि बताती हैं कि कभी उनके गांव में बेहद चहल-पहल हुआ करती थी लेकिन समय के साथ अब गांव में केवल 4 से 6 परिवार ही बचे हैं. ये फिल्म दो लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है. 80 साल की लीला देवी और 19 साल की गोलू की कहानी है. बुजुर्ग महिला लीला गांव में अकेली रहती है. उसकी इकलौती बेटी शादी के बाद देहरादून रहती है और मां से साथ चलने की जिद करती है, लेकिन लीला अपने गांव-पहाड़ नहीं छोड़ना चाहती.
आज भी पहाड़ पर ही बसती हैं सृष्टि की जड़े. वहीं, दूसरी ओर गोलू को गांव के अपना भविष्य नहीं दिखता. वह भी दूसरी लड़कियों की तरह शहर जाकर नाम कमाना चाहती है और एक दिन ऐसी परिस्थिति आती है कि दोनों को गांव छोड़ना पड़ता है. इस एक घंटे की फिल्म में इसी उलझन को दिखाया गया है.
गौर हो कि पहले मुंबई फिल्म महोत्सव का आयोजन इसी महीने होना था, लेकिन कोविड संकट के चलते इसका आयोजन अगले साल होगा. सृष्टि की फिल्म का मुकाबला विभिन्न भाषाओं की चार फिल्मों के साथ है.