श्रीनगर:चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन है. नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा हो रही है. इस मौके पर श्रीनगर के प्रसिद्ध मंदिर धारी देवी में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. मां धारी देवी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु लाइन में लगे नजर आए. श्रद्धालुओं ने मां भगवती के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुए देवी मां को नारियल, चुन्नी, चूड़ी और छत्र आदि अर्पित किए.
चारों धामों की रक्षक देवी हैं सिद्धपीठ मां धारी देवी:माना जाता है कि मां भगवती धारी देवी चारों धामों की रक्षक देवी हैं. इसलिए जब भी चार धाम यात्रा होती है, तो सभी श्रद्धालु मां भगवती की पूजा अर्चना के बाद ही अपनी यात्रा को सफल समझते हैं. चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ाव स्थल ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के कलियासौड़ स्थित सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर में विराजी मां दक्षिण काली के रूप में जानी जाती हैं. कलियासौड़ गांव के समीप स्थापित सिद्धपीठ धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी के बीचों-बीच स्थित है.
नवरात्रि के पहले दिन मां धारी देवी मंदिर में लगा भक्तों का तांता. देवी काली की अभिव्यक्ति धारी देवी को चार धामों के रक्षक के रूप में सम्मानित किया गया है. जब धारी देवी की मूर्ति को उनके स्थान से हटा दिया गया था, तो कुछ घंटों के बाद ही बहुत बढ़ा बादल फटा. भक्तों के अनुसार, केदारखंड को देवी के क्रोध का सामना करना पड़ा. क्योंकि उन्हें श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की झील के विस्तार के लिए दूसरे स्थान पर लाया गया था, तो श्रद्धालु 2013 की आपदा को मां भगवती के क्रोध के रूप में देखते हैं.
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अपना स्वरूप बदलती हैं मां धारी देवी:माना जाता है कि मंदिर के अंदर धारी देवी अपना रूप बदलती हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक कभी एक लड़की, एक औरत और फिर एक बूढ़ी औरत का रूप बदलती हैं. मूर्ति का निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता की काली के रूप में आराधना की जाती है.
क्या है मान्यता:इतिहासकारों की मानें तो मंदिर की स्थापना 3000 वर्ष पूर्व हो चुकी थी. श्रीनगर से 15 किमी दूर सिद्धपीठ धारी देवी के संदर्भ में लोक मान्यताओं के अनुसार काली माता मूर्ति के रूप से कालीमठ में थीं, जो बाढ़ के साथ बहकर यहां कलियासौड़ नामक स्थान पर रुक गईं. मान्यता के अनुसार कुंजू नामक एक धुनार को रात्रि में स्वप्न में देवी ने अपने को नदी से बाहर निकालने का आदेश दिया. कुंजू ने स्वप्न के आधार पर धारी देवी को अलकनंदा नदी में उस स्थान से बाहर निकाला, जिसके बाद विधि-विधान पूर्वक मंदिर की यहीं स्थापना की गई.