कोटद्वार: रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2022) के अवसर पर जहां एक तरफ बाजार में डिजाइनर राखियों की धूम है तो वहीं दूसरी ओर गाय के गोबर से बनी इको फ्रेंडली राखियां भी लोगों को खासी पसंद आ रही हैं. ये राखियां भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. डिजाइनर राखियों के बीच लोग इस वैदिक राखियों (demand for vedic rakhis) को काफी पसंद कर रहे हैं. गोबर से बनी राखियों (rakhis made of cow dung) का निर्माण बड़ी संख्या में उत्तराखंड के पौड़ी जिले में किया जा रहा है.
लैंसडाउन विधानसभा के रिखणीखाल क्षेत्र के कड़िया गांव में युवा गाय की गोबर से निर्मित राखियां (eco friendly rakhi) देशभर में भेज रहे है. युवा धर्मेंद्र नेगी ने अपने गांव में गोबर से निर्मित राखियां बनाने का रोजगार कर रहे हैं. उनके साथ गांव के तीन अन्य युवा भी लगे हुए है. धर्मेंद्र ने गोबर की राखी बनाने का प्रक्षिक्षण गुजरात और नागपुर जा कर लिया.
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अभीतक मिल चुका 50 हजार राखियों का आर्डर: धर्मेंद्र नेगी ने बताया कि बीते कई सालों से वे गाय के गोबर से राखियां बना रहे हैं, लेकिन मार्केटिंग का अनुभव कम होने के कारण वो ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा है. हालांकि बीते साल उन्होंने करीब 20 हजार राखियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजी थी. इस बार उन्हें बड़ी संख्या में ऑर्डर मिला है, जिसे वो पूरा करने में लगे हुए हैं. उनकी बनाई हुई राखियां राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में जा रही है. इस बार उन्हें अभीतक 50 हजार राखियों का आर्डर मिल चुका है.
गोबर से बनीं वैदिक राखियां धर्मेंद्र नेगी ने बताया कि जल्द ही वो बड़ी कंपनियों से करार करने जा रहे हैं. गोबर से बनी राखी पर गोबर से बने पेंट से कलाकृति की गई है, राखियां पूरी तरह से ईको फ्रेंडली हैं. युवा बताते हैं कि गोबर की राखी, दिये और स्वास्तिक गोबर गणेश ओम की आकृति अशोक स्तंभ की बाजार में डिमांड हो रही है.
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वैदिक राखी का प्रच्चलन दोबारा बढ़ा:धर्मेंद्र नेगी ने बताया कि पहले वैदिक राखी बांधने का प्रचलन था. वैदिक राखी बांधने मात्र से पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है और एंटी रेडिएशन भी होती है, यानी रेडिएशन से भी राहत मिलेगी. रक्षासूत्र एक कपड़े में पांच वस्तु दूर्वा (दूव घास), अक्षत (चावल), केसर, चंदन और सरसों के दाने लपेट कर राखी बनाकर बहन भाई के हाथ पर बांधती थीं. लेकिन बाद में चाइनीज राखियों की वजह से वैदिक राखियों की मांग कम होती चली और वो धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गई. हालांकि अब फिर से लोग वैदिक राखियां चलन में आ गईं हैं.