श्रीनगर: अगर ग्लोबल वार्मिंग (Global warming in Uttarakhand) को कम नहीं किया गया तो पहाड़ी मैदान यानी बुग्याल (उच्च हिमालयी क्षेत्र में घास के मैदान) भविष्य में बीते समय की बात बनकर रह जाएंगे (can be a threat to Bugyals). ये दावा हम नहीं कर रहे है, बल्कि वैज्ञानिकों ने हाल में किए शोध से ऐसा कहा जा रहा (research of scientists on bugyals) है. उत्तराखंड में बुग्यालों पर मंडरा रहे खतरे का बड़ा कारण टिम्बर लाइन, जिसे ट्री लाइन भी कहते हुए उसका शिफ्ट होना है. ट्री लाइन में हुए बदलाव बुग्यालों के लिए खतरे का आलर्म है.
दरअसल, हेमवंती नंदन गढ़वाल केन्द्रीय विवि श्रीनगर (Garhwal Central University Srinagar) का उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान (high altitude plant research institute), इसरो (Indian Space Research Organisation) के साथ मिलकर ट्री लाइन पर हो रहे बदलावों को अध्ययन कर रहा है. इसके लिए इसरो जहां सेटैलाइट इमेज का स्टडी कर रही है तो वहीं उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान के वैज्ञानिक 12000 हजार फीट की ऊंचाई पर फील्ड वर्क और हाईटेक कैमरों के जरिए उन जगहों का अध्ययन कर रहा है, जहां ट्री लाइन के पौध देखे जा रहे हैं.
पढ़ें- जल संकट को लेकर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, GDP की तर्ज पर GEP बनाने का दिया सुझाव चौकाने वाला खुलासा: चौकाने वाले बात ये है कि ट्री लाइन के बुरांस और भोजपत्र के इन इलाकों में देखने को मिले है. यानि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मध्य हिमालय में पाए जाने वाले पेड़ पौधे उच्च हिमालय में शिफ्ट हो रहे हैं, जो बुग्यालों के लिए खतरा बन रहे है.
ट्री लाइन के बारे में जानकारी. ट्री लाइन में बड़ा बदलाव: गढ़वाल विवि के रिसर्च एसोसिएट डॉ सुदीप सेमवाल ने बताया कि मध्य हिमालय में बहुत बड़ी संख्या में पाए जाने वाला बुरांस भी उच्च हिमालय क्षेत्रों में देखा रहा है. इसके साथ साथ भोजपत्र भी 12000 फीट पर मिल रहा है. इसके साथ साथ मध्य हिमालय में पाए जाने वाला सिमरू नाम का पौध भी उच्च हिमालय में दिख रहा है, जो बुग्यालों के लिए हानिकारक है.
120 से 130 दिन ही रूक रही बर्फ: उन्होंने बताया कि सिमरू एक झाड़ीनुमा आकार का पौधा है, जो बुग्यालों पर पड़ने वाली धूप को रोक देता है, जिससे बुग्यालों का जीवन चक्र प्रभावित होगा. धूप न मिलने के कारण बुग्याल पनप नहीं सकेंगे. उन्होंने ये भी बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ 160 दिन के बजाय 120 से 130 दिन ही भूमि पर टिक पा रही है, जो बुग्यालों के लिए हानिकारक है.
पढ़ें-उत्तराखंड में हिमालय के अस्तित्व पर मंडराया खतरा! काले साए ने बढ़ाई वैज्ञानिकों की चिंता बुग्यालों की सेहत खतरे में: हालांकि इस मामले में गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान के डायरेक्टर एमसी नौटियाल का कहना है कि अभी ये कहना गलत होगा कि बुग्याल अभी खत्म हो जायेगे. उन्होंने बताया कि इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते है. हालांकि इस बात से वो इनकार नहीं कर रहे हैं कि ट्री लाइन के आसपास के पेड़-पौधे अब उच्च हिमालय की तरफ देखे जा रहे हैं, जो बुग्यालों की सेहत के लिए सही नहीं है. ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पेड़-पौधों को अपने आप शिफ्ट भी कर रहा है.