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श्रीनगरः बाबा गोरखनाथ की गुफा की उपेक्षा, 800 साल से है नाथ संप्रदाय की आस्था का केंद्र

800 सालों से भी ज्यादा पुरानी गोरखनाथ गुफा और उनका मंदिर आज भी श्रीनगर में गुमनामी में है. जो प्राचीन काल में आस्था का केंद्र था.

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Published : Mar 4, 2020, 10:27 AM IST

Updated : Mar 4, 2020, 11:54 AM IST

temple
गुरु गोरखनाथ.

श्रीनगर:धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में श्रीनगर पूरे देश में जाना जाता है. इसके अलावा केंद्रीय विवि व एनआईटी भी श्रीनगर में होने से यहां पूरे देशभर से बच्चे पढ़ने आते है. वहीं, बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा का भी श्रीनगर केंद्रबिंदु भी है. इसके अलावा श्रीनगर में बहुत कुछ ऐसा है जो इसे अलग बनाता है, लेकिन उनकी पहचान आज तक नहीं हो पाई. 800 सालों से भी ज्यादा पुरानी गोरखनाथ गुफा और उनका मंदिर आज भी श्रीनगर में गुमनामी में है, जो प्राचीन काल में आस्था का केंद्र था. यहां देशभर के विभिन्न कोनों से नाथ संप्रदाय और अन्य श्रद्धालु यहां आते थे.

गुरु गोरखनाथ की गुफा.

बताते चलें कि प्राचीन काल में श्रीनगर गढ़वाल नरेश की राजधानी भी रहा है. साथ ही यह क्षेत्र नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था. वहीं, बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा के दौरान गुरु गोरखनाथ ने श्रीनगर में तपस्या भी की, जो पुरानी गोरखनाथ गुफा और उनके मंदिर से पता चलता है.

गुरु मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य रहे गुरु गोरखनाथ के नाम पर नेपाल के लोगों को गोरखा नाम दिया गया. वहीं नाथ संप्रदाय के केंद्र गोरक्षपीठ की गद्दी स्थल को गोरखपुर नाम दिया गया. इतिहासकारों और पुस्तकों के अनुसार गोरखनाथ के काल का ठीक-ठीक प्रमाण नहीं मिल पाता, लेकिन उनसे जुड़ी हुई कहानी आज भी गढ़वाल क्षेत्र में प्रचलित है.

कहा जाता है कि मुगल काल में औरंगजेब के समकालीन गढ़वाल नरेश फतेपति शाह ने श्रीनगर में गोरखनाथ की गुफा का जीर्णोंद्धार करवाया और मंदिर को अचूक संपत्ति भी प्रदान की, जिसका ताम्रपत्र आज भी मौजूद है. उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार शिवप्रसाद नैथानी का कहना है कि सन 1666 में गढ़वाल के राजा ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, जिसका प्रमाण मौजूद है.

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इसी तरह गढ़वाल के राजाओं की पुरानी राजधानी देवलगढ़ में सत्यनाथी नाथों की गद्दी हुआ करती थीं. देश में मध्य भारत की 12 गुफाओं के अलावा श्रीनगर में ही गुरु गोरखनाथ की ये गुफा है. गढ़वाल के राजाओं ने यहां मंदिर की स्थापना की और गढ़वाल के राज परिवार का इस पर विशेष विश्वास था.

एक कथा के अनुसार जब कुमाऊं की फौजों ने गढ़वाल पर हमला किया तो कहा जाता है कि गोरखनाथ की गुफा से धुनी जलने लगी उस धुनी का धुआं इतना ज्यादा था कि कुमाऊं की फौजों की आंखों में जलन होने लगी और आधी फौज लगभग हो गई और मजबूरन पूरी फौज को वापस जाना पड़ा. उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में कान छेदन की विधि को भी गोरखनाथ के इस मंदिर में किया जाता था.

Last Updated : Mar 4, 2020, 11:54 AM IST

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