उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

लकड़ी के इन बर्तनों से नई पीढ़ी अनजान, विलुप्ति की कगार पर काष्ठशिल्प - चुनार जाति के दस्तकार

उत्तराखंड के पहाड़ों में हर घर की शान बढ़ाने वाली काष्ठशिल्प अब स्मृति चिन्हों तक सिमट गई है. किसी जमाने में घर बनाने से लेकर घरेलू उपयोग में आने वाले लकड़ी के सामान में नक्काशी का प्रचलन था. लेकिन अब काष्ठशिल्प धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है.

wooden utensils
लकड़ी के बर्तन

By

Published : Mar 27, 2022, 5:17 PM IST

Updated : Mar 27, 2022, 8:00 PM IST

कालाढूंगीःकभी घर-घर में दिखने वाले लकड़ी के बर्तन आज के दौर में विलुप्त होते जा रहे हैं. जो बर्तन कभी घर-घर में दिखाई देते थे, अब वह बर्तन म्यूजियम की शोभा बढ़ाने के काम आ रहे हैं. यही वजह है कि अब काष्ठशिल्प विलुप्त होने के कगार पर है. आज की नई पीढ़ी काष्ठशिल्प के बारे में तो जानती है, पर लकड़ी के बर्तन क्या हैं. अधिकतर बच्चों को इसकी जानकारी नहीं है ?

उत्तराखंड में लकड़ी के बर्तनों का उपयोग लगभग बंद होता जा रहा है, जो काष्ठशिल्प कारोबार के लिए शुभसंकेत नहीं है. लकड़ी के बने इन बर्तनों का प्रयोग अधिकांश दूध व उससे बनने वाली वस्तुओं को रखने के लिए किया जाता है. जिसका कारण लंबे समय तक वस्तु का अपनी गुणवत्ता बनाये रखना है. लकड़ी के इन बर्तनों को बनाने के लिए मुख्य रूप से ऐसी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है जो वर्षों पानी में रहकर भी नहीं सड़ती.

विलुप्ति की कगार पर काष्ठशिल्प
ये भी पढ़ेंः स्मार्ट सिटी के अधूरे कार्य लोगों के लिए बने सिरदर्द, ईटीवी भारत से बयां की सच्चाई

चुनार जाति के दस्तकारों ने बचाई विरासतःपीढ़ियों से लकड़ी से बर्तन बनाने की इस विरासत को उत्तराखंड के चुनार जाति के दस्तकारों ने बचाए रखा है, जो हर वर्ष सर्दियों के मौसम में नैनीताल के कालाढूंगी के जंगलों में पानी के श्रोत के पास काष्ठशिल्प का कार्य करते हैं. उत्तराखंड की संस्कृति एवं जनजीवन से ताल्लुक रखने वाली पारम्परिक काष्ठ से निर्मित वस्तुएं मसलन दही जमाने के लिए ठेकी, दही फेंटकर मट्ठा तैयार करने वाली ढौकली, अनाज मापन के लिए नाली व माणा तथा खाद्यान्न के संग्रहण के लिए भकार वगैरह अब संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं. संग्रहालय की शोभा बने यह प्राचीन वस्तुएं करीब 200 साल पुरानी है.

पहचान बनाने के लिए मशक्कत जारीः पहाड़ में दही जमाने के लिए ठेकी तथा दही से मट्ठा तैयार करने के लिए डौकली व रौली जो स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने वाली सांगड़ व गेठी की लकड़ी से बनाई जाती है. इसी प्रकार घी रखने के लिए हड़पिया, नमक रखने को आद्रता शोषक तुन का करुवा नामक छोटा बर्तन और तुन की लकड़ी के ही आटा गूंथने व अन्य कार्य को बड़ी पाई या परात का इस्तेमाल हुआ. यहां तक कि छोटे बच्चों को दूध पिलाने के लिए केतलीनुमा गड़वे, कटोरी के रूप में फरवा व अन्न भंडारण के लिए बड़े संदूक नुमा भकार व पुतका, अनाज की मापन के लिए नाली, पाली, माणा व बेल्का, आटे से बने पके भोजन को रखने के लिए छापरा का प्रचलन था. पहाड़ी वाद्य यंत्र भी काष्ठ से ही तैयार होता है. इनमें से अधिकांश चीजें अब प्रचलन से बाहर हो गई हैं. इसके चलते यह वस्तुएं अब अपनी पहचान तक को तरसने लगी हैं.

काश्तकार गोपाल राम का कहना है कि 1960 से हमारा परिवार काष्ठशिल्प से जुड़े हैं. इन बर्तनों को हम पहाड़ों में बेचते हैं. जिसके आमदनी से हम अपना परिवार चलाते हैं. वन प्रभाग की तरफ से भी हमें कई बार पौधरोपण के लिए गमलों के ऑर्डर मिलते रहते हैं. इन बर्तनों का प्रयोग होटल्स में ज्यादा देखा जा रहा है. होटल और घरों में लोग इन बर्तनों को सजावट के रूप में रखते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि वन विभाग की ओर से हमें काफी सुविधा मिलती है. वन विभाग की ओर से लकड़ी आसानी से उपल्बध हो जाती है. हालांकि, 2018 से जीएसटी लगने के बाद लकड़ी महंगी हो गई है.
ये भी पढ़ेंःयादगार लम्हें, पिता की विरासत सहेजने को बढ़े बेटी के कदम, पिता का सिर गर्व से हुआ ऊंचा

लकड़ी के बर्तन स्वास्थ्य के लिए अच्छे:काष्ठशिल्प के यह बर्तन स्वास्थ्य के हिसाब से भी लाभकारी है. लकड़ी के बर्तन की बनी दही खाने व मठा पीने का अपना ही स्वाद है. लकड़ी के बर्तन में पानी पीने, खाना खाने के कई लाभ हैं. आज मनुष्य किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है, अगर इन बर्तनों का उपयोग करने से मनुष्य कई तरह की बीमारियों से बच सकता है.

कॉर्बेट म्यूजियम की दुकान में बर्तन उपलब्धःउत्तराखंड के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में आज भी इन बर्तनों का प्रचलन है. हर घर में आपको लकड़ी के बर्तन देखने को मिल जाएंगे. कालाढूंगी में आए काष्ठशिल्पकारों द्वारा बनाए गए बर्तनों को कॉर्बेट ग्राम विकास समिति द्वारा कॉर्बेट संग्रहालय की दुकान में रखा है, जहां इनकी बिक्री के साथ ही इसका प्रचार-प्रसार भी किया जाता है.

Last Updated : Mar 27, 2022, 8:00 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details