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जिम कॉर्बेट का जीवनरक्षक था 'रॉबिन', दो बार आदमखोर से बचाई थी जान, पढ़िए रोचक कहानी - जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

Jim Corbett Dogs Grave in Uttarakhand एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट यानी जिम कॉर्बेट एक विश्व प्रसिद्ध शिकारी थे, यह तो हर कोई जानता है, लेकिन उनके दो कुत्तों के बारे में शायद ही किसी को पता हो. जिन्होंने कई बार जिम को आदमखोर बाघों से भी बचाया था. इसका जिक्र जिम कॉर्बेट ने अपनी किताब 'मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं' में भी किया है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि 'मुझे कोई हिंदुस्तान का पूरा सोना भी दे, फिर भी मैं अपने कुत्तों को नहीं दूंगा.' जब उनके दोनों कुत्तों की मौत हुई तो उन्होंने उनकी समाधि बनाई. जो आज भी कॉर्बेट पार्क में मौजूद हैं. ईटीवी भारत आज आपको जिम कॉर्बेट और उनके कुत्तों की जानकारी से रूबरू करवाएगा...

Jim Corbett Dogs
जिम कॉर्बेट के कुत्तों की कहानी

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 4, 2024, 4:24 PM IST

Updated : Jan 4, 2024, 6:03 PM IST

जिम कॉर्बेट के कुत्तों की कहानी

रामनगर:विश्व प्रसिद्ध शिकारी एडवर्ड जेम्स 'जिम' कॉर्बेट ने 33 नरभक्षी बाघों और तेंदुए को मारकर उत्तराखंड के लोगों को उनके आतंक से निजात दिलाई थी. खास बात ये थी कि इन आदमखोर शिकारी जानवरों को मारने के बाद जिम कॉर्बेट वन्यजीव संरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण बने थे. जिम कॉर्बेट के पास दो कुत्ते थे, जिनका नाम रोबिन और रोसीना था. जिम को दोनों कुत्तों से काफी प्रेम था. यही वजह थी कि उन्होंने अपने कुत्तों की समाधि भी बनाई थी.

विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट

₹15 में खरीदा था रोबिन, जिम कॉर्बेट की बचाई थी जान:जिम कॉर्बेट के दोनों कुत्ते रोबिन और रोसीना उनके साथ शिकार पर जाते थे. दोनों ही काफी वफादार थे. रोबिन ने दो बार जिम कॉर्बेट की जान बचाई थी. जिम ने अपनी किताब 'मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं' में रोबिन का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि 'रोबिन ने मेरी कई बार बाघ, तेंदुआ, भालू से जान बचाई. रोबिन को जिम कॉर्बेट ने भवाली से ₹15 में खरीदा था. जब कुत्तों की मौत हुई तो उन्होंने उनकी समाधि छोटी हल्द्वानी में बनाई थी. जो आज भी मौजूद है. जिसे देखने के लिए पर्यटक देश विदेश से पहुंचते हैं.

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छोटी हल्द्वानी (कालाढूंगी) में स्थित जिम की धरोहर यानी म्यूजियम को देखने के लिए दूर-दूर लोग आते हैं. नेचर गाइड पूरन कहते हैं कि जिम कॉर्बेट को कुत्तों से काफी प्रेम था. जब भी जिम आदमखोर बाघ या गुलदार को मारने जाते तो रोबिन भी उनके साथ रहता था. पूरन कहते हैं कि रोबिन की सूंघने की पावर बहुत ज्यादा थी. इसीलिए वो हमेशा जिम के साथ रहता था.

रोबिन और रोसीना की समाधि

पहले शिकारी थे, फिर बने वन्यजीव संरक्षक:बता दें कि जिम कॉर्बेट ने जीव जंतुओं और जैव विविधता के महत्व पर जागरूकता पैदा करने के लिए बड़ा योगदान दिया था. उन्हें उत्तराखंड के लोगों को आदमखोर जानवरों से बचाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने 33 आदमखोर शिकारी जानवरों को मारा था. जिसके बाद सबसे महान वन्यजीव संरक्षकों में से एक बन गए.

ग्राउंड में ईटीवी भारत संवाददाता कैलाश सुयाल

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का इतिहास:जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की स्थापना साल 1936 में की गई थी. मूल रूप से इसका नाम हैली नेशनल पार्क था. कॉर्बेट पार्क के इतिहास पर गौर करें तो साल 1800 तक यह क्षेत्र टिहरी के नरेश की निजी संपत्ति था. गोरखाओं के आक्रमण के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने टिहरी नरेश की मदद की. जिसकी एवज में यह क्षेत्र टिहरी नरेश ने अंग्रेजों को सौंप दिया गया. साल 1934 में तत्कालीन गवर्नर सर विलियम हैली ने इस क्षेत्र को वन्य जीवों के लिए संरक्षित जाने की वकालत की थी.

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वहीं, महान शिकारी और वन्यजीवों के संरक्षण कर्ता बने जिम एडवर्ड कॉर्बेट को इसकी सीमाओं का निर्धारण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. 8 अगस्त 1936 को यूनाइटेड प्रोविंस नेशनल पार्क एक्ट के तहत यह हैली नेशनल पार्क के रूप में भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान बना. उसके बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया. इसी बीच साल 1955 में जिम एडवर्ड कार्बेट का निधन हो गया. इसके बाद साल 1956 में उनकी याद में इस पार्क का नाम रामगंगा नेशनल पार्क से बदल कर 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' रख दिया गया.

Last Updated : Jan 4, 2024, 6:03 PM IST

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