हल्द्वानीः एक समय था जब उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्रों की खूब मांग हुआ करती थी. पर्वतीय अंचलों की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल दमाऊ, हुड़के अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं. ऐसे में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें अब पहाड़ों में कभी-कभी ही सुनाई देती हैं. ऐसे में कुमाऊं के लोक वाद्य यंत्र हुड़का को संरक्षित और संजोने का काम कर रहे हैं मनीष बिष्ट.
लोक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त के कगार पर. पहाड़ के विभिन्न उत्सव हों या लोक संगीत या देवी देवताओं के जागर हर जगह पर हुड़के की धुन सुनाई देती थी और हुड़के की धुन पर लोग अपने लोक नृत्य को भी किया करते थे, लेकिन बदलते दौर में पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त होता जा रहा है. नैनीताल जिले के नथुआ खान के रहने वाले 18 वर्षीय मनीष बिष्ट एक छात्र हैं, लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपनी लोक कला हुड़का बजाने में महारत हासिल है. उनके हुड़के की थाप पर लोग झूमने को मजबूर हो जाते हैं.
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मनीष बिष्ट हाल ही में प्रदेशस्तरीय देहरादून में आयोजित लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने हुड़के की थाप का लोहा मनवा है. बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति ,लोक कला पूरे देश में जानी जाती है, ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना पड़ेगा, तभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उत्तराखंड की पहचान हो सकेगी.
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कोऑर्डिनेटर गौरीशंकर कांडपाल का कहना है कि उत्तराखंड में बहुत से गुमनाम कलाकार हैं, जिनमें काफी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं. इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और संजोने का काम सांस्कृतिक विभाग द्वारा किया जाता है. मनीष बिष्ट परंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का का उभरता हुआ कलाकार है. ऐसे उभरते कलाकार को सरकार को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और लोक कला को बचा सके.