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आदमखोर वन्यजीव को मारने के आदेश पर सुनवाई, कोर्ट ने कहा- आंदोलन पर नहीं, एक्ट के तहत हो कार्रवाई - wildlife in Bhimtal

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भीमताल में आदमखोर वन्यजीव को मारने के आदेश पर सुनवाई की. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए वन विभाग से पूछा कि वन्यजीव की पहचान किए बिना मारने के आदेश कैसे जारी किए गए? वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11 A का पालन किया जाए.

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उत्तराखंड हाईकोर्ट

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 28, 2023, 3:17 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भीमताल में आदमखोर वन्यजीव (बाघ या गुलदार) द्वारा तीन लोगों निवाला बनाने पर वन विभाग द्वारा बिना चिन्हित किए सीधे मारने की अनुमति दिए जाने के मामले में स्वत संज्ञान लेकर सुनवाई की. सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए निर्देश दिए कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11 A का पालन किया जाए.

11 A के अनुसार मारने से पहले आदमखोर को चिन्हित किया जाए. उसे पकड़ा जाय. बाद में उसे ट्रेंक्यूलाइज किया जाए. इसके बाद भी अगर वन्यजीव पकड़ में नहीं आता है तो उसे मारने की चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति आवश्यक है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई जानवर इंसान पर जानलेवा हमला करता है तो इंसान अपनी आत्मरक्षा के लिए उसे मार सकता है. अगर घटना घट चुकी है तो उस स्थिति में उस जानवर को चिन्हित किया जाना आवश्यक है. जिससे निर्दोष जानवर न मारे जाएं.

इस मामले में कोर्ट के आदेश पर आदमखोर वन्यजीव को चिन्हित किया गया. उधर सरकार की तरफ से कहा गया है कि आदमखोर बाघिन थी. उसको ट्रेंक्यूलाइज कर लिया है. जिसकी फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट नहीं आई है.

मामले के अनुसार भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का स्वत संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सुनवाई की थी. खंडपीठ ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमती देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वे ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके. उन्होंने कहा कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13A में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमती दी जाती है. उन्होंने इसे पकड़ने और पहचान करने के लिए 5 पिंजरे और 36 कैमरे लगा रखे हैं. इस पर न्यायालय ने वन विभाग से पूछा, गुलदार है या बाघ? उसे मारने के बजाए रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए.
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न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है, ना की किसी नेता के आंदोलन की. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11A के तहत तीन परिस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं. पहला- उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ा जाए. दूसरा- ट्रेंक्यूलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाए. तीसरा और अंत में मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता है. लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए. उन्हें यही पता नहीं कि बाघ है या गुलदार? उसकी पहचान भी नहीं हुई. न्यायालय ने यह भी कहा था कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार नहीं दिया जाता है. क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद मारने के आदेश कैसे दे दिए?
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