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उत्तराखंड@19: पुलिस के एक थप्पड़ से फट गया था कान का पर्दा, आंदोलनकारी ने साझा किया अपना दर्द

उत्तराखंड राज्य के 19वें स्थापना दिवस के मौके पर राज्य आंदोलनकारियों ने अपने उन सपनों को याद किया है, जिन सपनों को लेकर पृथक राज्य का गठन किया गया था. राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि अगर इसी तरह उत्तराखंड के राजनेताओं का रवैया रहा तो आने-वाली पीढ़ी के लिए घातक हो सकता है और उत्तराखंड के लोगों का सपना अधूरा ही रह जाएगा.

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Published : Nov 7, 2019, 10:52 AM IST

हल्द्वानी:उत्तराखंड 9 नवंबर को अपनी 19वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है लेकिन राज्य आंदोलनकारियों का सपना आज भी अधूरा है. राज्य आंदोलनकारियों का मानना है कि जिस मकसद को लेकर उत्तराखंड का गठन किया गया था, वो आज भी पूरा नहीं हो पाया है. पहाड़ों से युवा लगातार पलायन कर रहे हैं. कहीं न कहीं इस पलायन के लिए पहाड़ के नेता जिम्मेदार हैं, क्योंकि राजनेता ही पलायन कर मैदान पहुंच रहे हैं. ऐसे में पहाड़ की चिंता कौन करे ?

राज्य आंदोलनकारी हरेंद्र क्यूरा का राज्य आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है. हरेंद्र क्यूरा आज भी अपने आंदोलन को याद कर सिहर उठते हैं. वो बताते हैं कि अलग राज्य बनाने के लिए जब वह आंदोलन कर रहे थे तब पुलिस ने पकड़ कर उनको इतना जोरदार थप्पड़ मारा था कि उनके कान का पर्दा फट गया था. उस दर्द को याद कर आज भी सिहर उठते हैं.

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस

हरेंद्र क्यूरा का कहना है कि जिन सपनों के लिए उन्होंने आंदोलन किया था, वह सपना आज भी अधूरा है. एनडी तिवारी ने मुख्यमंत्री रहते उत्तराखंड के विकास के लिए तो कुछ काम किया, लेकिन तिवारी के बाद जो भी सरकारें आईं उन्होंने उत्तराखंड के विकास के बजाय अपने विकास पर ज्यादा ध्यान दिया. पहाड़ की राजधानी पहाड़ पर होने का सपना था लेकिन आज भी राजधानी का सपना अधूरा है. देवभूमि के पहाड़ों पर लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. वहां पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा सुधारने की जरूरत है, लेकिन सरकार इस पर गंभीर नहीं है. उन्होंने राज्य सरकार से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की मांग की है.

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राज्य आंदोलनकारी गणेश उपाध्याय की मानें तो आज उत्तराखंड युवावस्था में पहुंच चुका है. युवा अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है लेकिन आज भी उत्तराखंड अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया है. पहाड़ों से लगातार पलायन हो रहा है. पहाड़ पर शिक्षा और चिकित्सा सेवा बदहाल स्थिति में पहुंच चुकी है. पलायन रोकने के बाद करने वाले राजनेता पहाड़ों से पलायन कर अपनी आवाज को हल्द्वानी और देहरादून में बना रहे हैं और देहरादून हल्द्वानी में बैठकर पहाड़ की राजनीति कर रहे हैं जो चिंता का विषय है.

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