हल्द्वानीः उत्तराखंड में पलायन त्रासदी की तरह है. पहाड़ से पलायन का दर्द किसी से छुपा नहीं है. पहाड़ वीरान हो रहे हैं. गांव खाली हो रहे हैं. ऐसे में इस दर्द को यहां के लोक गायकों ने अपने गानों के जरिए बयां किया तो कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक के जरिए बयां किया. नैनीताल जिले के बिनकोट गांव के रहने वाले युवा विवेक बिष्ट पहाड़ के प्रति अपनी भावनाओं और उम्मीदों के रंगों के जरिए खाली होते गांव के प्रति सुखद भविष्य की आस लोगों में जगाने की कोशिश कर रहे हैं.
नैनीताल जिले के छोटे से गांव बिनकोट के रहने वाले विवेक चंद्र बिष्ट पहाड़ के खाली होते गांव के प्रति अपनी भावनाओं को कैनवास पर उतारा है और उम्मीद जता रहे हैं कि इन पेंटिंग के जरिए पहाड़ छोड़ चुके लोगों के मन में अपने गांव के प्रति कुछ तो उम्मीद जागेगी.
वे पहाड़ की जीवन शैली, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर, उत्तराखंड के मूल देवी-देवताओं के चित्र को रंगों के जरिए के कैनवास पर उतारकर देश-विदेश में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंड के लोगों के मन में पहाड़ की यादों को जगाने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि पहाड़ की मिट्टी की खुशबू को महसूस करने वाले लोग किसी न किसी बहाने अपने पहाड़ वापस लौट सके.
ऐपण कला से सजी देहरी के बाहर बैठे बुजुर्ग, जंगल, नदी, उत्तराखंड के स्थानीय न्याय देवता गोलू के चित्रों को विवेक ने कैनवास पर उतारा है. चित्र लोगों को सीधे यह संदेश दे रहे हैं कि आपके गांव घरों की रौनक गायब है. विवेक पिछले 7 सालों से पेंटिंग कर रहे हैं. पहले पेंटिंग उनका शौक था लेकिन अब उन्होंने इसको अपना प्रोफेशन बना लिया है. विवेक अब तक करीब 300 से ज्यादा पेंटिंग बना चुके हैं, लेकिन इन पेंटिंग में सबसे ज्यादा उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर , पारंपरिक परिधान ,देवी देवता शामिल हैं जिसको देश विदेश में खूब सराहा जा रहा है.