रामनगर:रोशनी का पर्व दिवाली, जब लोग मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. साल भर लोग घर की इतनी सफाई नहीं करते जितनी दिवाली पर करते हैं. रंग-रोगन किया जाता है. घर को सुंदर बनाने और रोशन करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. इस पूरी कवायद का मकसद लक्ष्मी पूजा नहीं, बल्कि लक्ष्मी को प्रसन्न करना होता है. कुछ इसी मकसद से उल्लू की बलि भी दी जाती है. अब आप सोच रहे होंगे कि उल्लू तो देवी का वाहन माना जाता है. दिवाली पर उल्लू की बलि से देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. तो आज हम आपको बताएंगे की आखिर क्यों दी जाती उल्लू की बलि.
क्या है उल्लू?
उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन की अपेक्षा रात में अधिक स्पष्ट दिखाई देता है. ये अपनी गर्दन पूरी घुमा सकता है. इसके कान बेहद संवेदनशील होते हैं. रात में जब इसका कोई शिकार थोड़ी सी भी हरकत करता है तो इसे पता चल जाता है और यह उसे दबोच लेता है. इसके पैरों में टेढ़े नाखूनों-वाली चार-चार अंगुलियां होती हैं जिनसे इसे शिकार को दबोचने में विशेष सुविधा मिलती है. चूहे इसका विशेष भोजन हैं. उल्लू संसार के सभी भागों में पाया जाता है. भारत में इसे मां लक्ष्मी की सवारी भी कहते हैं.
संरक्षित प्रजाति है उल्लू
भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित है. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित हैं. इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है. पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं.
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क्यों दी जाती है उल्लू की बलि ?
माना जाता है कि उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो जीवित रहे तो भी लाभदायक है और मृत्यु के बाद भी फलदायक होता है. दिवाली में तांत्रिक गतिविधियों में उल्लू का इस्तेमाल होता है. इसके लिए उसे महीनाभर पहले से साथ में रखा जाता है. दिवाली पर बलि के लिए तैयार करने के लिए उसे मांस-मदिरा भी दी जाती है. पूजा के बाद बलि दी जाती है और बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है जिससे समृद्धि हर तरफ से आए.