हल्द्वानीः उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक पर्वों में से एक है घुघुतिया पर्व. घुघुतिया त्योहार कुमाऊं क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है. सरयू नदी के एक छोर से दूसरे छोर के लोग हालांकि इस पर्व को अलग-अलग दिन मनाते हैं. लेकिन मकर संक्रांति पर इस पर्व की खासी मान्यता है. इसके लिए लोग मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर घुघुतिया के पकवान बनाते हैं. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इस लोक सांस्कृतिक परंपरा को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
हल्द्वानी के भंवरी इलाके समेत पहाड़ों घुघुतिया त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. महिलाएं और बच्चे सुबह से ही घर पर घुघुतिया के पकवानों को तैयार करने में जुट जाते हैं. घुघुतिया को तलवार, ढाल, हुड़का सहित अन्य सामग्रियों की आकृति दिए जाने की परंपरा है. इन सामग्रियों में गुड़ का पानी, देसी घी, आटा, तिल और सौफ सहित कई अन्य चीजों को मिलाकर आटा गूंथा जाता है. फिर उस आटे से घुघुतिया पकवान बनाए जाते हैं. शाम को इन पकवारों को कढ़ाई पर तला जाता है और फिर भगवान को भोग लगाया जाता है. फिर मकर संक्रांति के दिन सुबह इन पकवानों को कौवों को पेश किया जाता है. पहाड़ में आज भी कौवे ईष्ट देवताओं के प्रतीक हैं. इसलिए ऐसा माना जाता है कि कौवों के रुप में ईष्ट देवताओं को भोज दिया जा रहा है.
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पौराणिक रूप में घुघुतिया त्यौहार की कथा अपने आप में बेहद खास है. इस त्योहार को मनाने के पीछे बागेश्वर के सरयू नदी के किनारे कुली बेगार प्रथा का अंत भी माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि लोगों को अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुली बेगार प्रथा से निजात मिली थी. इस त्योहार के पीछे चंद वंश के राजा कल्याण चंद की भी कहानी को भी जोड़ा जाता है.