कालाढूंगी: उत्तराखंड राज्य गठन को 20 साल पूरे हो गए हैं. राज्य गठन को लेकर सड़क से लेकर सदन तक कूच करने वाले राज्य आंदोलनकारियों की बदतर हालत पर सरकार संजीदा नहीं है. कालाढूंगी के चकलुवा (पूरनपुर) में बिस्तर पर अपाहिज हालत में पड़े राज्य आंदोलनकारी नंदन सिंह कुमटिया (46) पुत्र भूपाल सिंह कुमटिया इसका उदाहरण हैं.
पहले तो सरकार ने 16 साल बाद नंदन सिंह कुमटिया को राज्य आंदोलनकारी माना, उसके बाद नंदन को राज्य आंदोलनकारी की पेंशन जारी हुई. इस बीच एक सड़क हादसे में नंदन के पूरे शरीर में पैरालिसिस हो गया, जिसके बाद से उनकी जिंदगी बदल गई. नंदन की शिकायत है कि अपना इलाज कराने में उनकी कई बीघा जमीन बिक गई लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की. हर महीने इलाज में 5 से 6 हजार रुपये का खर्च आ रहा है.
ये है राज्य आंदोलनकारी नंदन की संघर्ष की कहानी नंदन ने बताया कि अलग राज्य की मांग को लेकर वह भी आंदोलन में कूदे. 1994 में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. एक महीने फर्रूखाबाद के फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में कैद में रहे, उससे पूर्व उन्हें कालाढूंगी और बाजपुर कारागार में भी बंद रहना पड़ा. 1999 में उनकी दिल्ली में एक निजि कंपनी में नौकरी लग गई. 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य गठन का नंदन ने भी जश्न मनाया.
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2004 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को चिन्हित कर उन्हें सरकारी नौकरी देने की घोषणा की. सरकार की ओर से जारी सूची में नंदन का नाम भी शामिल था. सरकारी नौकरी के सपने को लेकर दिल्ली में नौकरी छोड़ घर आ गए. तभी अचानक सरकार ने नंदन को राज्य आंदोलनकारी के बजाय आरक्षण विरोधी करार देकर ज्वाइनिंग लेटर पर रोक लगा दी.
इस बीच नंदन अपने को राज्य आंदोलनकारी साबित करने के संघर्ष में जुट गए. वर्ष 2005 में एक सड़क हादसे में नंदन का शरीर पूरी तरह से पैरालिसिस हो गया. नंदन का संघर्ष अब दो गुना बढ़ गया. एक ओर सरकार से लड़ना और दूसरी ओर जिंदगी से. इलाज के लिए नंदन ने अपनी चार बीघा जमीन बेच दी. तब भी पैरालिसिस पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ. कड़े संघर्ष के बाद 2016 में आखिरकार नंदन को सरकार ने राज्य आंदोलनकारी माना.
नंदन बताते हैं कि वो कई मंत्री, विधायकों से मिले, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की. सरकार के बाद अब शरीर से लड़ रहे हैं. राज्य आंदोलनकारी नंदन सिंह कुमटिया का कोई सुधलेवा नहीं है. ऐसे में उन्हें सरकार से एक अदद मदद की जरूरत है.