हल्द्वानीः हर साल 12 अक्टूबर को आरटीआई (सूचना का अधिकार) डे मनाया जाता है. देश में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों की निगरानी के लिए आरटीआई एक्ट को 2005 में यूपीए सरकार ने लागू किया था. उस समय इस एक्ट को लेकर पूरे विश्व में भारत दूसरे नंबर पर था, मगर अधिकारियों की मनमानी और आयोग का डर न होने से आरटीआई एक्ट कमजोर होता चला जा रहा है. जिसके चलते अब भारत विश्व में लगातार पिछड़ रहा है और 2018 में छठे स्थान पर पहुंच चुका है.
आरटीआई डे के मौके पर आरटीआई कार्यकर्ताओं ने विश्व में आरटीआई एक्ट की रैंकिंग गिरने पर चिंता जाहिर की है. आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया का कहना है कि भ्रष्टाचार और पारदर्शिता रोकने के लिए 2005 में कानून बनाया गया था. कानून के आने से अधिकारियों में भय था. धीरे-धीरे अधिकारियों में डर खत्म हो रहा है. अधिकारी आरटीआई को लगातार कमजोर कर रहे हैं जो आने वाले समय के लिए ठीक नहीं है. कई विभाग सूचना देने से कतराते हैं या सूचना देते भी हैं तो वह भी आधी अधूरी और गुमराह करने वाली होती है.
जिसके बाद कार्यकर्ताओं को आयोग में जाकर अपील करना पड़ता है, लेकिन अधिकारियों में आयोग का भी डर नहीं है. ऐसे में सूचना के अधिकार अधिनियम कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है, जो चिंता का विषय है.इसी तरह एक और आरटीआई कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा का कहना है कि 2005 में बने सूचना का अधिकार अधिनियम को सर्वोच्च कानून माना जा रहा था. लोगों की उम्मीद थी कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, लेकिन भ्रष्टाचार रोकने के लिए बनाए गए कानून को अधिकारी ठेंगा दिखा रहे हैं.