रामनगर: उत्तराखंड को कृषि के आधार पर मैदानी एवं पहाड़ी दो भागों में बांटा गया है. मैदानी क्षेत्रो में सिंचाई बड़े नहरों तथा नलकूपों के जरिए होती है. जबकि, पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे नहर (गुल) तथा हाइड्रम के जरिए सिंचाई की जाती है.
रामनगर में मिट रहा नहरों का अस्तित्व. रामनगर में वर्ष 1976 में बने कोसी बैराज और उससे निकलने वाली तुमड़िया फीडर नहर को छोड़ दें, तो कोसी नदी की धारा से भाबर के खेत-खलिहानों को सिंचित और आबाद करने में ब्रिटिशकालीन नहरों की अहम भूमिका रही है. रामनगर में रामनगर कैनाल, बेलगढ़ नहर और जस्सागांजा नहरें अंग्रेजों के दौर की बनी हुई हैं. आज भी इन नहरों से रामनगर के ग्रामीण इलाके में हजारों एकड़ भूमि की सिंचाई हो रही है. लेकिन आज इन नहरों का अस्तित्व खतरे में है.
रामनगर के भाबर इलाके में नहरों के जाल किसानों का सहारा हैं. ब्रिटिशकालीन नहरें आज खुद का अस्तित्व ढूंढ रही हैं. 1917 में प्रकाशित युनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा एंड अवध के जिला नैनीताल के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में रामनगर की इन नहरों का विवरण दर्ज है. सरकारी गजट के मुताबिक तब के समय में चिलकिया नहर से 5700 एकड़, जस्सागंजा नहर से 1880 एकड़ और रामनगर नहर से 6600 एकड़ जमीन की सिंचाई होती थी. इन नहरों की कुल लंबाई तब 20 किलोमीटर से अधिक थी और खेतों के लिए गूलें निकाली गई थी. 1926 में कोसी की बाढ़ से रामनगर को बचाने के लिए पत्थरों का मजबूत तटबंध बनाया गया था. ठीक उसी समय पवलगढ़ नहर, क्यारी की खिचड़ी नहर, कालाढूंगी की बौर नहरों का निर्माण भी हुआ था.
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पुराने दस्तावेजों के वर्ष 1910, 1911 और 1913 में कोसी नदी में भयंकर बाढ़ आई थी. जिसकी वजह से नहरें क्षतिग्रस्त हो गई थीं. उस समय इनकी मरम्मत के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक लाख रुपए खर्च किए थे. स्थानीय लोगों का कहना है कि अंग्रेज कोसी नदी के पानी को बांधकर एक जलाशय बनाना चाहते थे. लेकिन, कोसी की बिगड़ैल धारा के अनिश्चित स्वरूप देख अंग्रेजों ने अपना इरादा छोड़ दिया.
स्थानीय निवासी गणेश रावत के मुताबिक ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में उस दौर में उगाई जाने वाली फसलों का विवरण भी दर्ज है. फसली वर्ष 1322 के आंकड़ों के मुताबिक उस वक्त रबी की फसल के तहत 7881 एकड़ में गेहूं, 4229 एकड़ में लाही, 859 एकड़ में जौ, 79 एकड़ में चना-मसूर, 111 एकड़ में तंबाकू उगाया जाता था, जबकि खरीफ की फसलों में 9555 एकड़ धान, 211 एकड़ मक्का, 113 एकड़ मंडुआ, 11 एकड़ में गन्ना की पैदावार होती थी.
स्थानीय पर्यावरणविद् करन बिष्ट कहते है रामनगर कैनाल, बेलगढ़ नहर और जस्सागांजा नहर स्थानीय किसानों के लिए सिंचाई का मुख्य जरिया है. इन नहरों को जर्जर होने से बचाने के लिए विशेष रखरखाव, सौंदर्यीकरण के विशेष प्रयास करने की जरूरत है. वहीं, सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता कैलाश चंद्र उनियाल का कहना है कि नहर को लेकर कई योजनाएं नाबॉर्ड के माध्यम से हल्द्वानी भेजी गई है, जो हल्द्वानी से सरकार को भेज दी गई है. इसके साथ ही हमने क्षेत्रीय विधायक से नहर को जीर्णोद्धार के लिए मदद की मांग की है. उम्मीद है कि इस वर्ष नहरों के लिए आवंटन दे दिया जाएगा, ताकि नहरों का संरक्षण किया जा सके.
120 गांवों में जा रहा पानी
कोसी बैराज से निकलने वाली नहरें रामनगर क्षेत्र के 120 गांवों में हरित क्रांति के लिए वरदान साबित हो रही है. इन नहरों से बारी-बारी से गांवों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जाता है. सिंचाई के लिए कोसी बैराज जो सिंचाई नहरें गांवों में निकलती हैं, उनमें से कई गांवों में गूलों द्वारा सिंचाई व्यवस्था सुचारू रूप से की जाती है.