कविता बिष्ट के हौसलों की उड़ान. रामनगर: आपने देखा होगा कि अक्सर लोग जरा सी परेशानी आने पर घबरा जाते हैं और मंजिल तक पहुंचने से पहले ही उम्मीद हार जाते हैं. वहीं, कई लोग ऐसे होते हैं, जो हजारों कष्ट और संर्घष को भी झेलते हुए अपने हौसले से चुनौतियों को भी घुटने टेकने को मजबूर कर देते हैं. यही लोग दूसरों के लिए प्रेरणा और समाज के लिए मिसाल बनते हैं. ऐसी ही शख्सियतों में रामनगर की एसिड अटैक पीड़िता कविता बिष्ट भी शामिल हैं, जिनके हौसलों को देखकर निर्बलों को भी शक्ति मिलती है.
बता दें कि एसिड अटैक में कविता अपनी आंखों की रोशनी खो चुकी हैं, इसके बावजूद उन्होंने अपनी हिम्मत से शारीरिक कमजोरियों को कभी हावी नहीं होने दिया. इसी का नतीजा है कि खुद दृष्टि बाधित होकर भी कविता दूसरी महिलाओं की जीवन में रोशनी भरने का काम कर रही है. कविता बिष्ट ने कई महिलाओं को उम्मीद की किरण दिखाई है. जिसकी नतीजा है कि आज ये महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ ही स्वालंबन की ओर अपना कदम बढ़ा रही हैं.
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कविता ने अपने दर्द को हमारे कैमरे के सामने खुलकर बयां किया. उन्होंने बताया कि वह मुख्य रूप से सरोवर नगरी नैनीताल की रहने वाली हैं. साल 2008 में उन पर एक सरफिरे ने उन पर एसिड अटैक किया था. इस हादसे में न सिर्फ उनका चेहरा जला, बल्कि पूरी जिंदगी ही बदल दी. इस हादसे का जख्म इतना गहरा था कि उनके पिता अपनी बेटी के इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर सके और चल बसे.
कविता ने बताया कि 2008 में वह दिल्ली में काम करती थीं. रोजाना की तरह वह सुबह 5 बजे ऑफिस को जा रही थी. तभी दो बाइक सवार युवकों ने उन पर एसिड अटैक किया था. कविता ने बताया कि घटना के एक घंटे तक न तो पुलिस ने और न ही आसपास खड़े लोगो ने उसकी मदद की. हादसा सुबह हुआ और दोपहर 3 बजे उनके ऑफिस के सीनियरों ने उनका उपचार कराया.
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इस एसिड अटैक में कविता का पूरा शरीर, चेहरा और दोनों आंखें जल गई थी, लेकिन कविता ने हिम्मत नहीं हारी. आंखें जाने के बाद भी उन्होंने एक नए जीवन की शुरुआत की और कई तरह के प्रशिक्षण लिए. यहीं कारण है कि वे न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बनी, बल्कि कई और महिलाओं की प्रेरणा भी बनी. कविता बिष्ट के इसी हौसले को देखते हुए उनको महिला सशक्तिकरण का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया था.
बता दें कि कविता बिष्ट रामनगर के जस्सा गांजा क्षेत्र में कढ़ाई बुनाई और कई सजावटी सामान बना रही हैं. साथ ही वे महिलाओं को भी यह कला सिखा रही हैं. कविता महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई और अन्य कला सिखा रही है और अपने उत्पादों को बेच भी रही हैं. कविता ने कहा 100 से ज्यादा महिलाएं उनसे प्रशिक्षण ले चुकी हैं. उनके और महिलाओं द्वारा कुशन, बैग, पर्दे, मालाएं, गोबर के दीपक, ऐपण ऑर्डर पर बनाया जाता है. जिसकी वजह से आज 50 महिलाएं उनसे जुड़कर रोजगार पा रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही है.
वहीं, कविता बिष्ट से कढ़ाई-बुनाई सहित अन्य कला सीखकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. महिलाओं का कहना है कि हमें गर्व होता है. बिना देखे हुए उन्होंने हमें इतनी चीजें बनाना सिखाई है. आज हम अपने पैरों पर खड़े होकर अपने घर मे सहयोग कर रही हैं. महिलाएं कविता बिष्ट का धन्यवाद अदा करती नहीं थक रही हैं.
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वहीं, दिव्यांग हेम चंद्र भट्ट कहते है कि मुझे भी कविता बिष्ट को देखकर ही हौसला मिला. जब ये काम कविता कर सकती है तो मैं भी जीवन मे कुछ कर सकता हूं. आज कविता के साथ मिलकर मैंने भी कढ़ाई, बुनाई और गरीब बच्चों को निशुल्क कंप्यूटर सीखा रहा हूं. वहीं, प्रोफेसर जीसी पंत ने कहा कि 2008 में जब कविता के साथ इतना बड़ा हादसा हुआ था. उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि ईश्वर इस लड़की को इतना आत्मबल देगा.
जीसी पंत कहते है कि इतना दर्द सहने के बाद भी आज इतने लोगों को ये महिला रोजगार से जोड़ रही है. क्योंकि उसने महिला की पीड़ा को समझा है. कोई ये नही कह सकता कि एक दुर्घटना के तहत ईश्वर ने इनकी आंखें छीन ली है. मैं तो ये कहूंगा कि ईश्वर की कृपा दृष्टि इस बेटी पर है कि उसे अंतरदृष्टि दी है. वह इस समय महिलाओं के बीच में भगवती भवानी के रूप में अवतरित हुई हैं और हजारों महिलाओं को काम सिखा रही है. उन्हें स्वरोजगार से जोड़ रही हैं.