रामनगरःकॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve) प्रशासन 15 साल बाद गिद्ध और चीलों की गणना (Counting of vultures and eagles) करने का मन बना रहा है. इससे पहले 2007 में गिद्धों और चीलों की गणना की गई थी. उस दौरान कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में गिद्ध और चीलों की संख्या 346 थी. रिजर्व में 7 से ज्यादा प्रजाति के गिद्ध और चील पाए जाते हैं. इसमें चमर गिद्ध, राज गिद्ध, काला गिद्ध, जटायु गिद्ध, यूरेशियाई गिद्ध, हिमालयी गिद्ध, रगड़ गिद्ध, देशी गिद्ध आदि हैं.
वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल का कहना है कि पक्षियों में गिद्धों की प्रजाति का प्रकृति संतुलन में बड़ा अहम रोल होता है. हालांकि, इनकी संख्या तेजी से गिरी है. इस दौरान पूरे भारत में इनकी संख्या 3 से 4 हजार के करीब है. वहीं, गिद्धों और चीलों की गणना के लिए कॉर्बेट के डायरेक्टर ने शासन को पत्र भेजकर अनुमति मांगी है. अनुमति मिलते ही गिद्धों की गणना का कार्य शुरू किया जाएगा.
15 साल बाद फिर होगी गिद्ध-चीलों की गणना. ये भी पढ़ेंः
घड़ियाल व मगरमच्छों को रास आ रहा कॉर्बेट का रामगंगा क्षेत्र, बढ़ रहा कुनबा, अधिकारी गदगद बता दें कि रेडिएशन, बढ़ते शहरीकरण और जंगल के क्षेत्र के कम होने जैसे कई कारणों से गिद्धों की संख्या में कमी आई है. कॉर्बेट के डायरेक्टर धीरज पांडे ने बताया कि कॉर्बेट में गिद्धों की गणना के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है. अनुमति मिलते ही गणना का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा. इसके बाद प्राप्त आंकड़ों के आधार पर गिद्धों की संख्या बढ़ाने के लिए मास्टर प्लान बनाया जाएगा.
इसलिए कम हुई गिद्धों की संख्याःपशुओं को दी जाने वाली डिक्लोफेनाक दवा गिद्धों की कम होती संख्या का सबसे बड़ा कारण है. इसीलिए कंट्रोलर ऑफ इंडिया की ओर से इस दवा को 2014 में बैन कर दिया गया. जानकारी के मुताबिक, इंजेक्शन और टेबलेट के रूप में डिक्लोफेनाक दवा को पशुओं को बीमारी में दी जाती थी. लेकिन बावजूद इसके पशु मर रहे थे. लोग पशुओं के मरने पर उन्हें खुले में छोड़ देते थे. इसके बाद उन मृत पशुओं को गिद्ध खाते थे. इसलिए यह दवा गिद्धों के शरीर में पहुंचकर उन्हें नुकसान पहुंचाती थी. साथ ही गिद्धों की मौत का कारण भी बन रही थी. यही वजह है कि गिद्धों की संख्या लगातार कम हुई.