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आजादी के 72 साल बाद भी गुमनामी की जिंदगी जी रहे दुगतु गांव के लोग

धारचूला की दारमा वैली का दुगतु गांव गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं. इस गांव के लोग आजादी के 72 साल बाद भी मूलभूत सुविआओं के लिए महरूम हैं. गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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Published : Oct 6, 2019, 12:38 PM IST

नैनीताल, Pithoragarh Darma valley

नैनीताल:भले ही आज देश 5G की तरफ बढ़ रहा है, धारचूला की दारमा वैली के लोग आज भी मोबाइल नेटवर्क से कोसों दूर हैं. देश आजाद हुए 72 साल पूरे होने जा रहे हों, लेकिन उत्तराखंड के इस सीमांत गांव के लोग आज भी गुलामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. इन गांवों के लोगों को आज तक न तो मोबाइल टावर की सुविधा मिली है और न ही बेहतर सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य की. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन करने को मजबूर हैं.

मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे दुगतु गांव के लोग.

दुगतु गांव के लोगों का कहना है कि गांव में संचार सेवा नहीं होने से उनको भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर गांव में कोई बीमार हो जाए या कोई आपदा आ जाए तो वह अपनी आवाज किसी तक नहीं पहुंचा सकते. दारमा वैली के गांव के लोगों का कहना है कि साल 2013 में जब आपद आई थी तब उनके गांव में कई लोगों की मौत हुई थी, लेकिन संचार सेवा न होने की वजह से आज तक किसी को यह तक नहीं पता कि गांव में कितनी बड़ी आपदा आई.

इसे विडंबना ही कहेंगे कि मोबाइल नेटवर्क न होने से ग्रामीण सुख और दुःख की बातें दुनियां तक नहीं पहुंचा पाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि 2 दिन पहले की गांव के शख्स की हार्ट अटैक से बरेली में मौत हो गई. शव को बरेली से धारचूला करीब 500 किलोमीटर की दूरी तय करके लाया गया, लेकिन महज 60 किलोमीटर दूर उसके गांव में युवक के माता-पिता को उनके बेटे की मौत का पता नहीं चल सका.

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दुगतु गांव के लोगों के साथ-साथ आईटीबीपी जवानों को भी मोबाइल नेटवर्क न होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आईटीबीपी जवानो भी लंबे समय तक अपने परिजनों से बात नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, आइटीबीपी बेस कैंप में सेटेलाइट फोन जरूर है. लेकिन उसका प्रयोग वह भी ना के बराबर कर पाते हैं.

वहीं, क्षेत्रीय विधायक हरीश सिंह धामी कहते हैं कि सरकार की उपेक्षा के चलते आज तक गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुंच सका है. मोबाइल नेटवर्क की मांग को लेकर उन्होंने जंतर-मंतर में धरना भी किया लेकिन उसका भी कोई फल उन्हें नहीं मिल पाया.

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