नैनीताल: जन आंदोलन से अस्तित्व में आए उत्तराखंड के लिए कई लोगों ने अपनी शहादत दी. इन तमाम शख्सियतों के बीच पृथक राज्य की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन को अपने जनगीतों और कविताओं से धार देते थे गिर्दा. आज जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा की 10वीं पुण्यतिथि है. भले ही आज गिर्दा हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. जितनी राज्य आंदोलन के समय हुआ करती थी. चाहे वो नवगठित राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो और चाहे बेलगाम होती नौकरशाही. देखिए खास रिपोर्ट...
राज्य के निर्माण आंदोलन में अपने गीतों से पहाड़ी जनमानस में उर्जा का संचार और अपनी बातों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का जो हुनर गिर्दा में था, वो सबसे अलहदा था. उनकी ये रचना इस बात की तस्दीक करती है.
आज हिमाला तुमनकैं धत्यूछों, जागो जागो ओ मेरा लाल...
लखनऊ की सड़कों पर रिक्शा खींचने के बाद गिर्दा ने उत्तराखंड में पृथक राज्य के लिए चल रहे आंदोलन की ऐसी राह पकड़ी कि वो खुद उत्तराखंड आंदोलनों के पर्याय बन गए, उन्होंने जनगीतों से लोगों को अपने हक-हकूकों के लिए ना सिर्फ लड़ने की प्रेरणा दी. बल्कि, परिवर्तन की आस जगाई.
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उत्तराखंड के साल 1977 में चले वन बचाओ आंदोलन, 1984 के नशा नहीं रोजगार दो और 1994 में हुए उत्तराखंड आंदोलन में गिर्दा की रचनाओं ने जान फुंकी थी. इतना ही नहीं उसके बाद भी हर आंदोलन में गिर्दा ने बढ़-चढ़कर शिरकत की, लेकिन 22 अगस्त 2010 को अचानक गिर्दा की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई.
गिर्दा ने जिस राज्य की कल्पना की थी और जिस ध्येय को लेकर पृथक राज्य के रूप उत्तराखंड का गठन हुआ. वो सपना आज भी अधूरा है. वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन शाह का कहना है कि आज हमें गिर्दा की कमी बहुत खल रही है. इन 20 सालों में जो भी सरकार आई वो जन आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई. प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट बदस्तूर जारी है. ऐसे में अगर गिर्दा आज जिंदा होते तो बहुत दु:खी होते. ये रचना सत्ता की उस लूट खसोट को ही उजागर करती है.
एक तरफ बर्बाद बस्तियां-एक तरफ हो तुम,
एक तरफ डूबती कश्तियां-एक तरफ हो तुम,
एक तरफ है सूखी नदियां-एक तरफ हो तुम,
एक तरफ है प्यासी दुनियां- एक तरफ हो तुम.
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी,
तुम तो पानी के व्यापारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,