नैनीताल की चाइना पीक पर हो रहा भूस्खलन नैनीतालः सरोवर नगरी नैनीताल खतरे के मुहाने पर खड़ा है. इसी बीच नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी कही जाने वाली चाइना पीक पर भूस्खलन हुआ है. जिससे नैनीताल वासियों में दहशत का माहौल है. इस बार काफी देर तक पहाड़ी से बोल्डर और पत्थर सड़कों पर गिरते रहे. जिससे पहाड़ी के तलहटी में रहने वालों के होश फाख्ता हो गए. उधर, मामले की गंभीरता को देखते हुए विभागीय अधिकारियों ने चाइना पीक पहुंकर मौका मुआयना किया.
बता दें कि नैनीताल की सबसे ऊंची और संवेदनशील चाइना पीक की पहाड़ी में एक बार फिर से भूस्खलन की घटना देखने को मिली है. प्रत्यक्षदर्शी भूपेंद्र बिष्ट ने बताया कि मंगलवार को हुई बारिश के बाद चाइना पिक के ऊपरी छोर वाली पहाड़ी में बड़ा भूस्खलन हुआ. जिसके बाद पहाड़ी से मलबा और पत्थर लुढ़क कर नैनीताल-पंगूट मार्ग पर आ गिरे. पहाड़ी से मलबा और पत्थर काफी देर तक सड़क पर आते रहे. इस घटना के बाद लोगों काफी खौफजदा हैं.
नैनीताल के चाइना पीक पर भूस्खलन वहीं, स्थानीय निवासी बिशन सिंह ने बताया कि अक्सर चाइना पीक की पहाड़ी से बरसात के दौरान और बरसात के बाद धूप खिलने पर भूस्खलन होता है. पहाड़ी से गिरने वाला मलबा आबादी क्षेत्र तक पहुंचता है. जिससे स्थानीय लोगों में डर माहौल पैदा हो जाता है. लिहाजा, शासन प्रशासन को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है. उनका कहना है कि सरकार को चाइना पीक से भूस्खलन को रोकने और नैनीताल के अस्तित्व को कायम रखने के लिए ठोस कार्य योजना बनानी चाहिए.
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साल 1880 में चाइना पीक की पहाड़ी में हुआ था विनाशकारी भूस्खलनःनैनीताल के चाइना पीक की पहाड़ी से 1880 के दशक से लगातार भूस्खलन हो रहा है. 18 सितंबर 1888 को चाइना पीक की पहाड़ी में विनाशकारी भूस्खलन हुआ था. जिसमें 150 से ज्यादा भारतीय और ब्रिटिश नागरिकों की मौत हो गई थी.
सरोवर नगरी पर मंडराया खतरा इसके बाद से लगातार पहाड़ी से भूस्खलन हो रहा है, लेकिन अब तक पहाड़ी के ट्रीटमेंट के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी और न ही अब तक कोई काम किए गए. जिसके चलते लगातार चाइना पीक की पहाड़ी से भूस्खलन हो रहा है. जिससे पहाड़ी की तलहटी पर रहने वाले लोगों की जान पर खतरा मंडरा रहा है.
भूगर्भ शास्त्री सरकार को भेज चुके रिपोर्ट, खतरे को लेकर कर चुके आगाहःवहीं, कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्री प्रोफेसर बहादुर सिंह कौटल्या बताते हैं कि नैनी पीक की पहाड़ी पर भूस्खलन आने वाले समय में नैनीताल के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है. वो कई बार सरकार को आगाह भी कर चुके हैं, लेकिन मामले को गंभीरता से नहीं देखा जा रहा है.
उनका कहना है कि पहाड़ी पर हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए वो पहले ही अध्ययन रिपोर्ट शासन को भेज चुके हैं. जिस पर सरकार ने आज तक कोई अमल नहीं किया. जिसके चलते समय-समय पर भूस्खलन हो रहा है. अगर समय रहते भूस्खलन को रोकने के लिए ठोस नीति बनाकर कार्य शुरू नहीं किया तो जल्द ही बड़ा भूस्खलन देखने को मिल सकता है.
वहीं, स्थानीय निवासी सुरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि इससे पहले 1984 में भी पहाड़ियों में बड़ा भूस्खलन हुआ था. जिसमें कई घर, घोड़े मलबे में दब गए थे. जिसके बाद प्रशासन ने क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सूखाताल, आयरपाटा, यूथ हॉस्टल, प्राइमरी स्कूल समेत आस पास के क्षेत्रों में विस्थापित किया. जिसके बाद प्रशासन ने भूस्खलन का मलबा और बोल्डर आबादी तक न पहुंचे, इसके लिए पहाड़ी में दस-दस फीट ऊंची दीवार बनाई.
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सुरेंद्र प्रसाद का कहना है कि कुछ सालों तक पहाड़ी में हुए भूस्खलन के मलबे को इन दीवारों ने रोका, लेकिन अब दीवारों पर मलबा पूरी तरह से भर चुका है. जिसके चलते पत्थर अब आबादी वाले क्षेत्रों में आ रहे हैं. जिससे स्थानीय लोगों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. भूस्खलन के चलते लोगों में डर का माहौल है. उन्हें हमेशा चिंता सताती है कि कहीं उनके साथ कोई हादसा न हो जाए.
वहीं, 80 साल के बुजुर्ग गोपाल सिंह बिष्ट बताते हैं इससे पहले साल 2019 में 3 बार, 2018 में दो बार, 2014-15 में तीन बार पहाड़ी में भूस्खलन हुए. भूस्खलन से गिरने वाला मलबा और बोल्डर लगातार आबादी वाले क्षेत्रों एवं सड़कों पर गिरता है. जिससे स्थानीय लोगों की जान पर खतरा मंडराता रहता है. लिहाजा, सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए.