उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

दिवाली पर तांत्रिक देते हैं उल्लू की बलि, क्या इससे प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी ?

दीपावली में भले ही मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती हो, लेकिन उनके वाहन उल्लू की दिवाली पर शामत आ जाती है. धन की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई जगहों पर तांत्रिक उल्लुओं का बलि देते हैं. आइए हम आपको बताते हैं क्या है इसका मिथक.

Owls sacrificial by tantriks on Diwali
दिवाली पर तांत्रिक देते हैं उल्लू की बलि

By

Published : Nov 2, 2021, 7:59 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 2:11 PM IST

हल्द्वानी: दीपावाली धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने और घरों की खुशहाली का त्योहार है. साल भर लोग इस पर्व का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं. आम लोग जहां दीपावली में घरों को दिये, रंग-बिरंगी लाइटों और रंगोली से सजाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं वहीं, तंत्र-मंत्र विद्या सिद्ध करने वाले इस दिन उल्लू की बलि देते हैं. जी हां, आपको यह सोचकर हैरानी होगी कि उल्लू को तो देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, तो ऐसे में उसकी बलि क्यों दी जाती है.

तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए उल्लू का प्रयोग: दीपावली के शुभ मौके पर लोग लक्ष्मी की पूजा करते हैं, परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अंधविश्वास के चलते मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जान के पीछे पड़ जाते हैं. माना जाता है कि तांत्रिक जादू-टोना तंत्र-मंत्र और साधना विद्या में उल्लू का प्रयोग करते हैं. उल्लू की बलि दिए जाने से तंत्र-मंत्र विद्या को अधिक बल मिलता है. इसकी बलि दी जाने से जादू-टोना बहुत कारगर सिद्ध होते हैं, ऐसी धारणा समाज में व्याप्त है. जिसके चलते लोग उल्लुओं को पकड़ने के लिए जंगलों की ओर रुख करते हैं. इस अंधविश्वास के चलते दुर्लभ होती प्रजाति पर लोग अत्याचार कर रहे हैं.

उल्लू की बलि का राज!

उल्लू की विशेषता:उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन की अपेक्षा रात में अधिक स्पष्ट दिखाई देता है. ये अपनी गर्दन पूरी घुमा सकता है. इसके कान बेहद संवेदनशील होते हैं. रात में जब इसका कोई शिकार थोड़ी सी भी हरकत करता है तो इसे पता चल जाता है और यह उसे दबोच लेता है. इसके पैरों में टेढ़े नाखूनों-वाली चार-चार अंगुलियां होती हैं जिनसे इसे शिकार को दबोचने में विशेष सुविधा मिलती है. चूहे इसका विशेष भोजन हैं. उल्लू संसार के सभी भागों में पाया जाता है. भारत में इसे मां लक्ष्मी की सवारी भी कहते हैं.

पढ़ें:नरक चतुर्दशी : इस दिन पूजा करने से नहीं होता अकाल मृत्यु का भय, जानिए मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

विलुप्त होते उल्लू से ईको सिस्टम पर असर: उल्लुओं के मारे जाने से ईको सिस्टम पर भी इसका असर पड़ता है. शास्त्रों की नजर से देखें तो उल्लू मां लक्ष्मी का वाहन है. उल्लू की आंख में उसकी देह की तीन शक्तियों का वास माना जाता है. उल्लू के मुख्य मंडल, उसके पंजे, पंख, मस्तिष्क, मांस उसकी हड्डियों का तंत्र विद्या में बहुत महत्व माना जाता है, जिनका तांत्रिक दुरुपयोग करते हैं. शास्त्रों के जानकारों के अनुसार दीपावली पर मां लक्ष्मी को खुश करके अपने यहां बुलाने के लिए कुछ लोग उल्लू की बलि देते हैं. इस मौके पर लाखों रुपए खर्च करके उल्लू की व्यवस्था करके रखते हैं.

क्यों दी जाती है उल्लू की बलि:माना जाता है कि उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो जीवित रहे तो भी लाभदायक है और मृत्यु के बाद भी फलदायक होता है. दिवाली में तांत्रिक गतिविधियों में उल्लू का इस्तेमाल होता है. इसके लिए उसे महीनाभर पहले से साथ में रखा जाता है. दिवाली पर बलि के लिए तैयार करने के लिए उसे मांस-मदिरा भी दी जाती है. पूजा के बाद बलि दी जाती है और बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है, जिससे समृद्धि हर तरफ से आए.

पढ़ें:धनतेरस पर बाजार में उमड़ी भीड़, सामान खरीद कम रहे देख ज्यादा रहे लोग

दक्षिण भारत में उल्लू की बलि प्रथा: बता दें कि दीपावली के समय दक्षिण भारत की यह परंपरा है. दक्षिण भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जब आप बलि देंगे तो मां लक्ष्मी कैसे प्रसन्न हो सकती हैं. ऐसे में तांत्रिक जादू- टोना आदि तंत्र विद्या के लिए आरोह-अवरोह का पाठ करते उल्लू की बलि देते हैं. जानकारों का कहना है एक निर्बल प्राणी की बलि देना महापाप है और यह आवश्यक नहीं है.

संरक्षित प्रजाति है उल्लू:भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित प्राणी है. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित हैं. इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है. पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं.

पढ़ें:इस धनतेरस पर होगी धनवर्षा, जानिए खरीदारी के शुभ-मुहूर्त, राशि के अनुसार करें खरीदारी

उल्लू की सुरक्षा के लिए वनकर्मी तैयार:अंधविश्वास के चलते एक विलुप्त होती प्रजाति को खतरा बढ़ गया है. वहीं दिवाली में यह खतरा और अधिक बढ़ जाता है. कहा जाता है कि तांत्रिक दीपावली पर जादू-टोना तंत्र-मंत्र और साधना के लिए उल्लू की बलि देकर रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं. दीपावली के मद्देनजर वन्यजीव तस्कर भी जंगलों में सक्रिय हो गए हैं. ऐसे में वन विभाग ने अलर्ट घोषित करते हुए वनकर्मियों की छुट्टी रद्द कर दी हैं. साथ ही वन विभाग ने स्पेशल टास्क फोर्स गठित कर संभावित क्षेत्रों में गश्त बढ़ाने की भी निर्देश दिए हैं.

हल्द्वानी में वनकर्मी मुस्तैद: यह नहीं दीपावली के मद्देनजर उल्लुओं की तस्करी भी संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में वन विभाग इस विलुप्त प्रजाति को भी संरक्षित करने को लेकर गंभीर दिख रहा है. इसी के तहत वन विभाग ने एक घायल अवस्था में विलुप्त प्रजाति के उल्लू को रेस्क्यू किया है. तराई पूर्वी वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी संदीप कुमार ने बताया कि दीपावली के मद्देनजर वन विभाग अलर्ट पर है. ऐसे में वन विभाग ने कॉम्बिंग शुरू कर दी है.

पढ़ें:अल्मोड़ा: 400 साल पुराना ताम्र उद्योग झेल रहा उपेक्षा का दंश, कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट

घायल उल्लू का रेस्क्यू: वन विभाग के रांसाली रेंज के वन कर्मियों ने एक घायल उल्लू का रेस्क्यू किया है. वन विभाग की टीम ने उल्लू को रेस्क्यू सेंटर भेजा है. जहां उसका इलाज चल रहा है. संभवतया हो सकता है वन्यजीव तस्करों से बचने के दौरान उल्लू घायल हुआ हो. गौरतलब है कि दीपावली के मद्देनजर उल्लुओं की तस्करी शुरू हो जाती है. दीपावली के दिन तंत्र-मंत्र को लेकर कई बार इसका बलि के लिए का प्रयोग किया जाता है. डीएफओ संदीप कुमार ने कहा अगर कोई भी जंगल में तस्करी या वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ वन अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Nov 3, 2021, 2:11 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details