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उत्तराखंड में गन्ने की जैविक खेती की शुरुआत, किसानों के लिए साबित होगी वरदान - sugarcane farmers of uttarakhand

हल्द्वानी के प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा की मेहनत एक बार फिर रंग लाई है. इस बार उन्होंने गन्ने की खेती जैविक तरीके से की है, जिसमें उन्होंने किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं किया है.

organic sugarcane farming in haldwani
हल्द्वानी में गन्ने की जैविक खेती

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Published : Dec 3, 2021, 12:32 PM IST

हल्द्वानी: गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने प्रदेश में पहली बार गन्ने की जैविक खेती (organic sugarcane farming) की शुरुआत की है. उनके खेत में गन्ने की फसल तैयार हो गई है. उन्होंने जैविक विधि से करीब एक एकड़ में गन्ने की फसल का उत्पादन किया है, जिससे वो प्रदेश के अन्य किसानों को गन्ने का जैविक बीज उपलब्ध करा सकें और किसान जैविक गन्ने की खेती की ओर रुख कर सकें.

बता दें, नरेंद्र मेहरा ने गन्ने को ट्रेंच विधि (Trench Technique) और रिंग-पिट विधि (ring-pit method) से बोया है. इसका बीच उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से लिया है, जिसकी वैराइटी 13235 कोसा और कोसा 0118 है. गन्ने की ऊंचाई करीब 20 फीट है. किसान नरेंद्र मेहरा का दावा है कि वह कुमाऊं मंडल के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने जैविक बनने को तैयार किया है.

हल्द्वानी में गन्ने की जैविक खेती

प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा (Farmer Narendra Mehra) का कहना है कि इससे पहले वह अन्य खेती भी जैविक तरीके से करते आ रहे हैं लेकिन उन्होंने पहली बार गन्ने की जैविक खेती की शुरुआत की है, जिससे कि लोगों को गन्ने से तैयार होने वाले गुड़, खाड़, सिरका सहित गन्ने से बनने वाले अन्य उत्पादन लोगों तक पहुंच सके. उन्होंने बताया कि वर्तमान में उत्पादित होने वाले गन्ने में रसायन का प्रयोग किया जाता है लेकिन उनका मकसद है कि लोगों तक गन्ने से उत्पादित जैविक प्रोडक्ट्स को लोगों तक पहुंचाई जाए, जिससे कि लोगों की सेहत ठीक रहे.

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नरेंद्र मेहरा ने बताया कि वो स्थानीय किसानों को अपने खेत से जैविक बीज उपलब्ध कराएंगे, जिससे कि अन्य किसान गन्ने की खेती जैविक कर सकें. उनके द्वारा तैयार गन्ने से स्थानीय कोल्हू पर गुड़ और अन्य उत्पादन को तैयार कर लोगों को भी उपलब्ध कराएंगे.

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इस तरह करते हैं जैविक खेती:नरेंद्र मेहरा ने बताया कि इस बार उन्होंने गन्ने को पूर्ण तरीके से जैविक विधि से तैयार किया गया है. इसके लिए गाय का गोबर, गौमूत्र, गुड, बेसन और कम्पोस्ट (Compost) खाद में डाला गया है. इसमें किसी तरह का रसायन प्रयोग नहीं किया गया है. उन्होंने बताया कि जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता और सिंचाई अंतराल में वृद्धि होगी है. फसलों की उत्पादकता में भी इजाफा होगा और किसानों को बेहतर करना मूल भी मिलेगा.

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