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नैनों से निकली अश्रुधार ने बना डाली थी झील, शिव-सती के प्रेम और वियोग की कहानी बयां करता है ये मंदिर

नैनीताल जिले में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां देवी सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं,  जो नैना देवी को दर्शाते हैं.

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Published : Apr 6, 2019, 8:00 AM IST

नैना देवी मंदि

नैनीतालःआज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए हैं. हिंदू धर्म में नवरात्र के नौ दिन बेहद पवित्र बताए गए हैं. हम आपको नौ दिनों तक प्रदेश के नौ खास देवी मंदिरों के स्थापना के पीछे की पौराणिक कहानी बताएंगे. आज हम बात करते हैं नैनीताल के नैना देवी मंदिर के बारे में.


नैनीताल जिले में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां देवी सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं, जो नैना देवी को दर्शाते हैं. नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत जा रहे थे. उस वक्त देवी सती के नयन धरती पर गिरे थे, यही स्थान नैना देवी मंदिर कहलाया.

नैना देवी मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार हिमालय के राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था. शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे. परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया.


एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहां यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी को निमन्त्रण तक नहीं दिया. लेकिन, पिता की लाडली सती को लगा कि पिता उन्हें बुलाना भूल गए. हठ करके सती पिता द्वारा आयोजित भव्य यज्ञ में पहुंची. यज्ञ हरिद्वार स्थित कनखल में चल रहा था, जिसमें सभी देवी-देवता पहुंचे थे.

नैनीताल का प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर.


जब सती यज्ञ स्थल पहुंची तो उसे आभास हुआ कि उसके पति शिव और उसके लिए कोई भी स्थान नहीं है, ऐसे में उन्हें आभास हुआ कि पिता उनकी और शिव की उपस्थिति यज्ञ में नहीं चाहते थे. जब दक्ष प्रजापति की नजर सती पर पड़ी तो उन्होंने सती का तिरस्कार किया. मारे गुस्से से सती ने यज्ञ में ही खुद को भस्म करने का फैसला लिया. सती ने यज्ञ स्थल पर ही अग्नि में समाधि ली और अपने प्राण त्याग दिए.

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सती की मौत से यज्ञ स्थल पर खलबली मच गई. जब शिव को सती की मौत का पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हुए, उन्होंने अपने गणों को दक्ष प्रजापति की हत्या करने का आदेश दिया. शिव गणों ने यज्ञ स्थल में दक्ष प्रजापति की सेना का सर्वनाश कर दिया. देवी-देवताओं ने महादेव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया. दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा मांगी. शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया.


परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा. उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया. कहा जाता है कि शिव के इस हाल को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. ऐसी स्थिति में धरती पर सती के अंग जहां-जहां गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए.


कहा जाता है कि नैनीताल में सती के नयन गिरे थे. नयनों की अश्रुधार ने यहां पर ताल का रूप ले लिया, तबसे यहां पर शिव पत्नी सती की पूजा नैनादेवी के रूप में की जाती है.

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