बलियानाला भूस्खलन का अध्ययन करने पहुंचे वैज्ञानिक. नैनीतालः उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कई जगहों पर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं. जोशीमठ में दरार और भू धंसाव से सभी वाकिफ हैं. इसके अलावा मसूरी, कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी समेत नैनीताल में भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है. नैनीताल के बलियानाला क्षेत्र में कई दशकों से लैंडस्लाइड हो रहा है. जिसे लेकर सरकार अलर्ट मोड पर है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने विश्व बैंक और नीदरलैंड के वैज्ञानिकों के तत्वाधान में कमेटी का गठन कर खतरनाक क्षेत्रों का अध्ययन करवाना शुरू कर दिया है.
नैनीताल, मसूरी का भूगर्भीय अध्ययन: दरअसल, जोशीमठ आपदा के बाद उत्तराखंड के बेहद खतरनाक स्थानों का केंद्र और राज्य सरकार ने अध्ययन कराना शुरू कर दिया है. विश्व बैंक और नीदरलैंड के वैज्ञानिकों के तत्वावधान 8 सदस्यीय टीम ने नैनीताल, मसूरी, देहरादून समेत भूगर्भीय दृष्टि से बेहद खतरनाक स्थानों पर अध्ययन शुरू कर दिया है. यह टीम नैनीताल के बलियानाला, चाइना पीक समेत आसपास के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों का अध्ययन कर रही है. अभी विशेषज्ञों ने बलियानाला में पानी की गुणवत्ता, ग्राउंड वाटर पर अध्ययन और सर्वे किया.
नीदरलैंड से आए वैज्ञानिक: नीदरलैंड से नैनीताल पहुंचे वैज्ञानिक डॉक्टर कीस बोंस ने बताया कि पहले चरण में नैनीताल और देहरादून का सर्वे के साथ अध्ययन होना है. विदेशी और देश के प्रमुख विशेषज्ञ करीब 5 महीने तक बारीकी से अध्ययन करेंगे. अध्ययन करने के बाद नैनीताल, देहरादून, मसूरी की भावी विकास योजनाएं और मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा.
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ये है नैनीताल में लैंडस्लाइड की वजह: वैज्ञानिक कीस बोंस ने बताया कि नैनीताल की भौगोलिक परिस्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा है. नैनीताल का जनसंख्या घनत्व के साथ ही पर्यटन कारोबार भी बढ़ रहा है. ऐसे में वर्तमान में मौजूदा संसाधन कम पड़ रहे हैं. भूस्खलन, जल संकट समेत तमाम समस्याएं बढ़ रही हैं. अब देहरादून और नैनीताल शहर की भावी विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने से पूर्व मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा.
शहरी विकास विभाग को सौंपी जाएगी रिपोर्ट: वहीं, रिस्क मैनेजमेंट सॉल्यूशन इंडिया के सीनियर मैनेजर शफीक ने बताया कि एडीबी वित्त पोषित क्लाइमेट रेसिलिएंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट फॉर नैनीताल प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन किया जाना है. जिसके तहत शहर में बढ़ती आबादी का आंकड़ा, आबादी के आधार पर हर क्षेत्र में बढ़ती डिमांड, वाटर क्वालिटी, शहर के रिस्क फैक्टर, भूस्खलन क्षेत्र समेत तमाम पहलुओं पर अध्ययन किया जाएगा. जिसका अध्ययन कार्य शुरू हो चुका है. अध्ययन के बाद रिपोर्ट को शहरी विकास विभाग और एडीबी को सौंपी जाएगी.