नैनीताल: गोविंद वन्य जीव विहार अभ्यारण में वन गुर्जरों के परिवारों को प्रवेश न देने के मामले पर नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने मामले में राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई है. साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान वन गुर्जरों को कोरोना महामारी का हवाला देते हुए उनके घरों तक जाने से रोकना मानव अधिकारों का उल्लंघन है. विभाग के द्वारा किया गया कार्य असंवेदनशील हैं.
बता दें कि रामनगर की हिमालयन ग्रामीण विकास समिति के अध्यक्ष मयंक मैनाली ने इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें कहा गया कि रामनगर क्षेत्र में रिसॉर्ट मालिकों ने कानून को ताक पर रखकर कोसी नदी में अवैध कब्जा कर रिसॉर्ट का निर्माण किया है. उनके द्वारा वन्यजीवों को हानि पहुंचाई जा रही है. लिहाजा वन क्षेत्रों में किए गए अतिक्रमण को हटाया जाए.
मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने रिजर्व फॉरेस्ट में रह रहे वन गुर्जरों के मामले को स्वतः संज्ञान लिया था. राज्य सरकार से वन गुर्जरों को विस्थापित करने के लिए कमेटी बनाकर प्लान तैयार करने का कहा था, ताकि वन गुर्जरों को रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र से विस्थापित किया जा सके.
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हिमालयन ग्रामीण विकास समिति की जनहित याचिका के बाद कई अन्य लोगों के द्वारा इस जनहित याचिका में प्रार्थना पत्र दायर किए गए. जिसमें कोर्ट को बताया कि वन गुर्जरों के साथ राज्य सरकार व वन विभाग के द्वारा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है. साथ ही फोटो के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि वन गुर्जर परिवारों का एक बच्चा मरी हुई भैंस के ऊपर सोता है.