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नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव का आगाज, कदली वृक्ष लेने रवाना दल - कुमाऊं की कुलदेवी हैं मां नंदा-सुनंदा

नैनीताल शहर की आस्था का प्रतीक मां नंदा देवी महोत्सव का शानदार आगाज हो गया है. 17 सितंबर तक चलने वाले इस महोत्सव का आयोजन कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया जा रहा है.

नंदा देवी महोत्सव का आगाज
नंदा देवी महोत्सव का आगाज

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Published : Sep 11, 2021, 4:20 PM IST

Updated : Sep 11, 2021, 7:45 PM IST

नैनीताल: 119वें नंदा देवी महोत्सव का श्रीगणेश हो गया है. कुमाऊं डीआईजी नीलेश आनंद भरणे ने दीप प्रज्ज्वलित कर नंदा देवी महोत्सव का शुभारंभ किया. कोविड प्रोटोकॉल को देखते हुए जिला प्रशासन एवं पुलिस की देखरेख में 17 सितंबर तक सादगी के साथ धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे.

श्रीराम सेवक सभा के मुताबिक 1926 से सभा आयोजन करती आ रही है. पूजा-अर्चना के बाद सभा पदाधिकारियों का दल कदली वृक्ष लेने के लिए ज्योलीकोट सड़ियाताल क्षेत्र स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर के लिए रवाना हुआ. 12 सितंबर को वृक्ष लेकर दल नैनीताल पहुंचेगा.

तल्लीताल स्थित वैष्णो देवी मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद वृक्ष को वाहन से सूखाताल ले जाया जाएगा. सूखाताल में विधिवत पूजा के बाद वृक्ष को नंदा नैना देवी मंदिर लाया जाएगा. 13 सितंबर को मूर्ति निर्माण के बाद अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया जाएगा.

नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव का आगाज.

इस वर्ष नंदा-सुनंदा की मूर्तियों के साथ डोले का नगर भ्रमण और विशाल भंडारा नहीं होगा. मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश करने और निकासी के लिए अलग-अलग गेटों की व्यवस्था की गई है. मंदिर के भीतर पंडितों के पाठ कराने पर भी प्रतिबंध रहेगा. श्रद्धालु मां नंदा-सुनंदा के दर्शन के बाद पिछले गेट से बाहर जा सकेंगे.

नंदा देवी महोत्सव पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है. कदली के पेड़ से ही मूर्ति निर्माण होता है, फिर उसे महोत्सव समापन पर झील में विसर्जित किया जाता है. 1955-56 तक मूर्तियों का निर्माण चांदी से होता था. फिर परंपरागत मूर्तियां बनने लगीं. मूर्ति निर्माण में कदली के पेड़ का तना, कपड़ा, रुई और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है.

पढ़ें: कुमाऊं की कुलदेवी हैं मां नंदा-सुनंदा, 11 सितंबर से महोत्सव का आगाज

श्रीराम सेवक सभा के मुताबिक मूर्ति निर्माण में कला पक्ष पर अधिक ध्यान देते हैं. माता नंदा-सुनंदा की मूर्तियां ईको फ्रेंडली वस्तुओं से बनाई जाती हैं. इसलिए ही महोत्सव को पर्यावरण संरक्षण की मिसाल कहा जाता है.

चार छोलिया दल देंगे प्रस्तुति

महोत्सव का स्वरूप बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन की ओर से चार छोलिया दल मंगाए गए हैं. अनुष्ठानों के लाइव के साथ-साथ पंत पार्क, श्रीराम सेवक सभा, तल्लीताल और माल रोड समेत पांच स्थानों पर बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन पर भी प्रसारण आएगा.

कुमाऊं की कुलदेवी हैं मां नंदा-सुनंदा

कुमाऊं के लोग मां नंदा-सुनंदा देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं को नगर भ्रमण कराने के बाद नैनी झील में विसर्जित करने की परंपरा है. मान्यता है कि मां अष्टमी के दिन स्वर्ग से धरती पर अपने मायके में विराजती हैं और 3 दिन अपने मायके में रहने के बाद पुनः वापस अपने ससुराल लौट जाती हैं. जिस वजह से मां के डोले को झील में विसर्जित करने की परंपरा है, लेकिन नगर भ्रमण समेत भव्यता पर अभी सरकार की अनुमति का इंतजार है.

Last Updated : Sep 11, 2021, 7:45 PM IST

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