नैनीतालः उत्तराखंड में राज्य सरकार द्वारा वनों की परिभाषा को बदलने के मामले पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि पर्यावरण को बचाना और उसको विकसित करना सरकार का जिम्मा है. लिहाजा, सरकार के पास कोई ऐसा डेवलपमेंट प्लान है, तो सरकार उसे 4 सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट में शपथ-पत्र के माध्यम से पेश करें.
बता दें कि नैनीताल निवासी प्रोफेसर अजय रावत, विनोद पांडे और देहरादून निवासी रेनु पाल के द्वारा नैनीताल हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार के द्वारा 21 नवंबर 2019 को उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने एक आदेश जारी कर उत्तराखंड के 5 हेक्टेयर से कम या 60% से कम घनत्व वाले वन क्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर कर दिया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार का ये आदेश शासनादेश ना होकर ऑफिस मेमोरेंडम है, जिसे कैबिनेट से पास कराना या लागू करना आवश्यक नहीं होता है. इस मेमोरेंडम के जरिए सरकार अपने चहेतों को वनों के भीतर लाभ दिलाना चाहती है. लिहाजा सरकार के इस आदेश पर रोक लगाई जाए, जिस पर पूर्व में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सरकार के आदेश (मेमोरेंडम) पर रोक लगा दी थी.