नैनीताल: उत्तराखंड हाइकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे व अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में गृह सचिव व जेल महानिदेशक कोर्ट में पेश हुए. कोर्ट उनके द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुई. कोर्ट ने फटकार लगाते हुए दोनों अधिकारियों से कहा कि वे प्रदेश की सभी जेलों का दौरा करें. वहां कैसी व्यवस्था चल रही है. कैदी किस हाल में रह रहे हैं. इसकी रिपोर्ट 7 दिसंबर तक कोर्ट में पेश करें.
मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी. पूर्व में जेल महानिदेशक ने कोर्ट में कहा था कि पिथौरागढ़ में नई जेल बन रही है. जिसका बजट भी पास हो गया है. कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने पर पता चला कि जेल तो नहीं बनी और 7 करोड़ रुपया बाउंड्री बनाने में हीं खर्च हो गया. वहीं, चंपावत जेल में कैदियो का खाना बाथरूम में बन रहा है. कोर्ट ने सरकार को यह भी सुझाव दिया है कि छोटे अपराध के संबंध में बंद कैदियों को पैरोल पर छोड़ा जा सकता है या नहीं इस पर भी विचार करने को कहा है.
राज्य के सभी जेलों की क्षमता करीब 35 सौ के आसपास है. जबकि वर्तमान में साढ़े छह हजार से अधिक कैदी जेलों में बंद हैं. कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है. कोर्ट ने चंपावत की जिला जेल का उदारहण देते हुए कहा कि जिला जेल में छह महिला कैदी अभी अंडर ट्रायल में बंद हैं. जिस कमरे में वे रह रही हैं. वह कमरा 10 ×10 का है. कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या यह कमरा छह लोगों के रहने के लिए पर्याप्त है. क्या यह मानवाधिकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है.
सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. मामले के अनुसार संतोष उपाध्याय व अन्य ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने यहां जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं और जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं.
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