हल्द्वानी:नाग पंचमी का पर्व 2 अगस्त दिन मंगलवार को मनाया जाएगा. श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष नाग पंचमी पर उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र और शिव और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो अत्यंत लाभदाई रहेगा. इस दिन नाग देवता की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की आराधना करने से कुंडली में कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से व्यक्ति की कुंडली में राहु, केतु ,जैसे ग्रहों के प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है.
ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक नाग पंचमी के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने और चांदी के नाग नागिन के जोड़े का पूजा करने का महत्व है, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सभी तरह के कष्टों को दूर करते हैं. इस दिन नाग देवता की आराधना करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है.
नाग पंचमी पर बन रहा शिव और सर्वार्थ सिद्धि योग. शुभ मुहूर्त:नाग पंचमी के दिन सुबह 6:05 से लेकर शाम 5:55 तक नाग पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त है, जो सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. नाग पंचमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है, जो शुभ फलदाई होगा. नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने और दूध पिलाने की परंपरा है. इस दिन जो भी व्यक्ति नाग देवता की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.
हिंदू धर्म में नाग देवता का खास महत्व है. नाग पंचमी के दिन सुख समृद्धि, खेतों में फसलों की रक्षा के लिए नागों की पूजा करने की परंपरा है. नाग देवता भगवान शिव के गले का आभूषण हैं और भगवान विष्णु की शैय्या भी नाग देवता को माना जाता है. इस दिन नागों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सर्प दंश का खतरा कम हो जाता है.
पढ़ें- आज की प्रेरणा: मनुष्य को स्वभाव से उत्पन्न दोषपूर्ण कर्म को नहीं त्यागना चाहिए
नाग पंचमी के दिन मुख्य द्वार पर दरवाजे पर गोबर से सांप की आकृति बनाई जाए, तो उस घर में नाग देवता की कृपा होती है और उस घर में कभी भी सांप नहीं आते हैं. नाग पंचमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा करने से मनुष्य के जीवन में कालसर्प दोष भी दूर हो जाता है.
पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं- दिव्य और भौम. दिव्य सर्प वासुकी और तक्षक आदि हैं. इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है. वे अगर कुपित हो जाएं तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं. इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है. जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है.
अनन्त, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक - इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है. इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं. अनन्त और कुलिक- ब्राह्मण, वासुकी और शंखपाल- क्षत्रिय, तक्षक और महापदम- वैश्य व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है.
नागपंचमी की पूजा-विधि:नागपंचमी के दिन अनन्त, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है. पूजा में हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करें. कच्चे दूध में घी और चीनी मिलाकर नाग देवता को अर्पित करें. इसके बाद नाग देवता की आरती उतारें और मन में नाग देवता का ध्यान करें. अंत में नागपंचमी की कथा अवश्य सुनें. यदि किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो ऐसे में नागपंचमी के दिन नाग देवता को दूध पिलाना चाहिए, क्योंकि शनि सर्प के कारक माने जाते हैं और भगवान शिव ने सांप अपने गले में धारण किया हुआ है. इसलिए नागपंचमी के दिन धातु से बने सर्प शिवलिंग पर अर्पित करने से शनि साढ़े साती का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.