हल्द्वानी:आधुनिक काल में इस मंदिर की स्थापना के बारे में मान्यता है कि 1930 के दशक में पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक भक्त को सपने में आकर मां काली ने स्वयं इस गुमनाम स्थल के बारे में जानकारी दी. काली माता के इस भक्त ने हल्द्वानी निवासी अपने एक मित्र रामकुमार (चूड़ीवाले) को मां काली के स्वप्न में आने की बात बताई थी.
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इसके बाद दोनों भक्त कुछ और श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ हल्द्वानी से कुछ ही दूरी पर स्थित गौलापार पहुंचे और जंगल में मौजूद इस जगह को ढूंढ निकाला. दैवीय आदेश के अनुसार यहां पर काली मूर्ति व शिव की मूर्ति के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी होनी चाहिए थी. खुदाई करने पर यहां देवी-देवताओं की कई मूर्तियों के साथ एक ताम्रपत्र भी मिला, जिसमें मां काली के माहात्म्य का उल्लेख किया गया था. उस वक्त खुदाई में मिली मूर्तियां आज भी यहां के पौराणिक मंदिर खण्ड में संरक्षित कर रखी गई हैं. इनमें से ज्यादातर मूर्तियां आंशिक तौर पर खंडित हैं.
एक चमत्कार की कहानी
करीब 3 दशक पहले किच्छा के एक सिख (अशोक बाबा) परिवार ने अपने मृत बच्चे को यहां लाकर मां काली के दरबार में यह कहकर समर्पित कर दिया कि मां अब इस बालक का जो चाहे वो करे. मां काली को समर्पित किये जाने के कुछ ही देर बाद वह मृत बच्चा पुनर्जीवित हो उठा. ऐसा माना जाता है कि इस परिवार के साथ घटी घटना के बाद देवी मां के प्रति लोगों की श्रद्धा और अगाध होती गई. तभी से नवरात्र और शिवरात्री पर आयोजित होने वाले भंडारे भी आयोजित किए जाने लगे.