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'काफल पाको मैनि चाखो', पहाड़ के रसीले काफल पहुंचे हल्द्वानी, क्या आप जानते हैं इसके पीछे की कहानी?

उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला फल काफल कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है. साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम भी करता है. जिस वजह से इसकी काफी डिमांड होती है. हल्द्वानी में भी जब काफल पहुंचा तो ग्राहक काफल का स्वाद लेने के लिए टूट पड़े. जानिए काफल खाने के फायदे और इसके पीछे की मार्मिक कहानी...

Kafal
काफल

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Published : May 12, 2022, 3:59 PM IST

Updated : May 12, 2022, 4:45 PM IST

हल्द्वानीः उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है. औषधीय गुणों से भरपूर काफल की बाजार में डिमांड काफी बढ़ गई है. यही वजह है कि हल्द्वानी के बाजार में काफल पहुंचा तो हाथों हाथ बिक गए. हर शख्स काफल का स्वाद लेने के लिए खरीदारी करता नजर आया.

चैत और बैसाख के महीने में देवभूमि में उगने वाले इस फल के कई मुरीद हैं. प्रकृति भी काफल के फलने का संकेत खुद-ब-खुद देने लगती है. कहा जाता है कि चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया 'काफल पाको मैनि चाखो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे. गर्मियों का मौसम आते ही पहाड़ों में लाल-लाल रसीले काफलों के लिए लोग जंगलों की ओर रुख करते हैं. ये जंगली फल कई परिवारों की आर्थिकी का भी जरिया बनता है.

पहाड़ के रसीले काफल पहुंचे हल्द्वानी.

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हल्द्वानी के बाजार में भी अल्मोड़ा के लंमगड़ा क्षेत्र में काफल पहुंचा तो खरीदारों की भीड़ उमड़ गई. बाजार में काफल ₹180 से ₹250 प्रति किलो के भाव से बिक रहा है. ग्राहक भी काफल (Kafal) के लिए कोई भी कीमत अदा करने को तैयार हैं. काफल विक्रेताओं का कहना है कि इस बार जंगलों में आग लगने और समय से बारिश न होने से काफल के रस में कमी आई है, लेकिन खट्टे और मीठे स्वाद से भरपूर काफल खाने के लिए ग्राहक पहुंच रहे हैं.

कई औषधियों गुणों से भरपूर काफलःकाफल में विटामिन, आयरन और एंटी ऑक्सिडेंट प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके साथ ही काफल कई तरह के प्राकृतिक तत्वों जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स से भी परिपूर्ण है. साथ ही काफल की पत्तियों में लावेन-4, हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है. काफल के पेड़ की छाल, फल और पतियां भी औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. काफल का अत्यधिक रस-युक्त फल पाचक होता है.

काफल के फल के ऊपर लगा भूरे व काले धब्बों से युक्त मोर्टिल मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी माना गया है. काफल का फल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं. साथ ही इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है. वहीं, मानसिक बीमारी, अस्थमा, डायरिया, जुकाम, दस्त, आंख की बीमारी, मूत्र और त्वचा रोगों के साथ ही कैंसर जैसे असाध्य रोगों के इलाज में भी काफल उपयोग में लाया जाता है.

आर्थिकी का जरिया भी है काफलःउत्तराखंड से पलायन कर चुके लोगों को तो ये फल बेहद लुभाता है. इतना ही नहीं गर्मियों की छुट्टी में स्कूली बच्चे इस फल को जंगलों से लाकर बाजारों में बेचते हैं. जिससे ये फल पारिवारिक आमदनी का भी जरिया बनता है. सामान्य तौर पर काफल के एक पेड़ से 15 किलो काफल निकलते हैं. हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में काफल (Myrica esculenta) काफी मिलता है. सदाबहार ये वृक्ष 1500 से 2500 मीटर तक की उंचाई वाले इलाकों में मिलता है.

बेहद मार्मिक है काफल कहानीःकाफल के ऊपर कई लोकगीत बनाए गए हैं. 'बेडू पाको बारा मासा, नरैणा काफल पाको चैता मेरी छैला' लोकगीत ने इस फल को देश ही नहीं विदेशों में भी पहचान दिलाई. काफल पर रचा गया ये गीत उत्तराखंडी संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है, लेकिन काफल की एक अन्य मान्यता भी है, जो देवभूमि के लोगों में काफी लोकप्रिय भी हैं.

मान्यता है कि सालों पहले देवभूमि के एक गांव में एक महिला अपने बेटी के साथ रहती थी, जो काफी गरीब थी. खेती कर महिला अपने परिवार का गुजारा किया करती थी. एक दिन महिला जंगल से काफी काफल तोड़ घर लाई और टोकरी में रखकर खेत में काम करने चली गई. महिला ने काफल की रखवाली के लिए बेटी को घर पर छोड़ दिया.

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महिला ने बेटी से काफल न खाने को कहा. काफल की रखवाली करते-करते बेटी गहरी नींद में सो गई और गर्मी के चलते काफल सूख गए. जब महिला घर वापस लौटी तो टोकरी में काफल कम दिखे. जिस पर महिला ने समझा कि उसकी बेटी ने काफल खा लिया है. गुस्से में आकर महिला ने अपनी बेटी को इतना पीटा की बेटी की मौत हो गई.

शाम को जब मौसम ठंडा हुआ तो काफल फिर से बड़े हो गए. जिसके बाद महिला ने देखा कि काफल तो उतने ही हैं. उसकी बेटी ने नहीं खाए हैं, जिसके बाद महिला को अपने किए पर काफी पछतावा हुआ और बेटी के वियोग में महिला ने भी अपने प्राण त्याग दिए.

बताया जाता है कि मां बेटी ने बाद में चिड़िया के रूप में जन्म लिया. दूसरे जन्म में बेटी चिड़िया के रूप में कहती है कि (काफल पाको मैनि चाखो) यानी काफल पक गए हैं, मैंने नहीं खाए. वहीं, लड़की की मां चिड़िया के रूप में (पुर पुतै पुर पुर) कहती हैं, यानी पूरे हैं बेटी पूरे हैं. ये कहानी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी प्रचलित है.

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Last Updated : May 12, 2022, 4:45 PM IST

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