हल्द्वानीः उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है. औषधीय गुणों से भरपूर काफल की बाजार में डिमांड काफी बढ़ गई है. यही वजह है कि हल्द्वानी के बाजार में काफल पहुंचा तो हाथों हाथ बिक गए. हर शख्स काफल का स्वाद लेने के लिए खरीदारी करता नजर आया.
चैत और बैसाख के महीने में देवभूमि में उगने वाले इस फल के कई मुरीद हैं. प्रकृति भी काफल के फलने का संकेत खुद-ब-खुद देने लगती है. कहा जाता है कि चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया 'काफल पाको मैनि चाखो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे. गर्मियों का मौसम आते ही पहाड़ों में लाल-लाल रसीले काफलों के लिए लोग जंगलों की ओर रुख करते हैं. ये जंगली फल कई परिवारों की आर्थिकी का भी जरिया बनता है.
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हल्द्वानी के बाजार में भी अल्मोड़ा के लंमगड़ा क्षेत्र में काफल पहुंचा तो खरीदारों की भीड़ उमड़ गई. बाजार में काफल ₹180 से ₹250 प्रति किलो के भाव से बिक रहा है. ग्राहक भी काफल (Kafal) के लिए कोई भी कीमत अदा करने को तैयार हैं. काफल विक्रेताओं का कहना है कि इस बार जंगलों में आग लगने और समय से बारिश न होने से काफल के रस में कमी आई है, लेकिन खट्टे और मीठे स्वाद से भरपूर काफल खाने के लिए ग्राहक पहुंच रहे हैं.
कई औषधियों गुणों से भरपूर काफलःकाफल में विटामिन, आयरन और एंटी ऑक्सिडेंट प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके साथ ही काफल कई तरह के प्राकृतिक तत्वों जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स से भी परिपूर्ण है. साथ ही काफल की पत्तियों में लावेन-4, हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है. काफल के पेड़ की छाल, फल और पतियां भी औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. काफल का अत्यधिक रस-युक्त फल पाचक होता है.
काफल के फल के ऊपर लगा भूरे व काले धब्बों से युक्त मोर्टिल मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी माना गया है. काफल का फल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं. साथ ही इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है. वहीं, मानसिक बीमारी, अस्थमा, डायरिया, जुकाम, दस्त, आंख की बीमारी, मूत्र और त्वचा रोगों के साथ ही कैंसर जैसे असाध्य रोगों के इलाज में भी काफल उपयोग में लाया जाता है.
आर्थिकी का जरिया भी है काफलःउत्तराखंड से पलायन कर चुके लोगों को तो ये फल बेहद लुभाता है. इतना ही नहीं गर्मियों की छुट्टी में स्कूली बच्चे इस फल को जंगलों से लाकर बाजारों में बेचते हैं. जिससे ये फल पारिवारिक आमदनी का भी जरिया बनता है. सामान्य तौर पर काफल के एक पेड़ से 15 किलो काफल निकलते हैं. हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में काफल (Myrica esculenta) काफी मिलता है. सदाबहार ये वृक्ष 1500 से 2500 मीटर तक की उंचाई वाले इलाकों में मिलता है.