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हल्द्वानी: कत्यूरी वशंजों ने मकर संक्रांति पर रानीबाग में की जिया रानी की पूजा-अर्चना

मकर संक्रांति की रात को जिया रानी के जौहर को याद करते हुए जागर किया जाता है. साथ ही ये लोग देवभूमि की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं.

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जिया रानी का जागर

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Published : Jan 15, 2020, 5:50 PM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड के इतिहास में पहला जौहर दिखाने वाली जिया रानी के सम्मान में हर साल हल्द्वानी के रानी बाग में कत्यूरी वंशज पूरी रात जागर लगाते हैं. इसी के चलते मकर संक्रांति की पूर्व रात्रि को कुमाऊं गढ़वाल के विभिन्न इलाकों से आए लोगों ने हल्द्वानी के रानीबाग पहुंचकर मां जिया रानी की गुफा में पूरी रात जागर किया. साथ ही देवभूमि की रक्षा के लिए प्रार्थना की.

जिया रानी का जागर

उत्तराखंड के पहले कत्यूरी वंश की जिया रानी थी, जिन्होंने अपने जौहर से देवभूमि की रक्षा की थी. बताया जाता है कि जिया रानी, रानी बाग स्थित गागरी नदी में स्नान कर रही थी. तभी दुश्मन ने उनके ऊपर गलत निगाह डाली. रानी दुश्मनों से बचने के लिए के रानीबाग की गुफा में चली गई और वहां से रानी सीधे हरिद्वार को निकल गईं. बाद में उस गुफा को जिया रानी शरण स्थली के नाम से जाना जाने लगा.

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बताया जाता है कि ये गुफा रानीबाग से हरिद्वार निकलती है. उत्तराखंड के पहले राजा रहे कत्यूरी वंश के वंशज बताए जाते हैं. जो हर साल उत्तरायणी के मौके पर कुलदेवी की पूजा अर्चना कर जागर लगाने के लिए हल्द्वानी के रानीबाग पहुंचते हैं.

कत्यूरी वंशज अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज हैं, इसलिए वो सूर्यवंशी भी हैं. उनका कुमाऊं क्षेत्र पर 6 से 11वीं सदी तक शासन था. बताया जाता है कि जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी.

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