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पुण्यतिथि: जाने-माने शिकारी और पर्यावरणविद् थे जिम कॉर्बेट, कई खूंखार नरभक्षियों को किया था ढेर - रामनगर ताजा समाचार टुडे

शिकारी और महान व्यक्तित्व के धनी जेम्स एडवर्ड जिम कॉर्बेट (James Edward Jim Corbett) की आज पुण्यतिथि (Jim Corbett 67th Death Anniversary) है. जिम कॉर्बेट (Jim Corbett) एक महान शिकारी थे. उन्होंने 1907 से 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगह नरभक्षी बाघों और तेंदुओं के आतंक से छुटकारा दिलाया था. बताते हैं जिम ने 31 साल में 19 आदमखोर बाघ और 14 तेंदुओं को ढेर किया था.

James Edward Jim Corbett
जिम कॉर्बेट

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Published : Apr 19, 2022, 7:46 PM IST

रामनगर:जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) का नाम आपने सुना ही होगा. लेकिन आप शायद ही जानते होंगे कि इस पार्क के पीछे जो सबसे बड़ा नाम जुड़ा है, वह है जेम्स एडवर्ड जिम कॉर्बेट (James Edward Jim Corbett) का. वही जिम कॉर्बेट जिन्होंने कई आदमखोर बाघ और तेंदुओं का शिकार कर लोगों को भय से मुक्त कराया था. आज जिम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट की 67वीं पुण्यतिथि (Jim Corbett 67th Death Anniversary) है. जिम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का निधन 19 अप्रैल 1955 को हुआ था.

जेम्स एडवर्ड जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था. नैनीताल में जन्मे होने के कारण जिम कॉर्बेट को नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों से बेहद लगाव था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में ही पूरी की. अपनी युवा अवस्था में जिम कॉर्बेट ने पश्चिम बंगाल में रेलवे में नौकरी कर ली, लेकिन नैनीताल का प्रेम उन्हें नैनीताल की हसीन वादियों में फिर खींच लाया.
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जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी. सर्दियों में यहां रहने के लिए जिम कॉर्बेट ने एक घर बना लिया और 1922 में यहां रहना शुरू कर दिया. गर्मियों में वो नैनीताल में गर्नी हाउस में रहने के लिए चले जाया करते थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया, जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है. उस दौर में छोटी हल्द्वानी में चौपाल लगा करती थी. आज भी देश-विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं. साल 1947 में जिम कॉर्बेट देश छोड़ कर विदेश चले गए और कालाढूंगी स्थित घर को अपने मित्र चिरंजी लाल शाह को दे गए.

1965 में चौधरी चरण सिंह वन मंत्री बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक बंगले को आने वाली नस्लों को जिम कॉर्बेट के महान व्यक्तित्व को बताने के लिए चिरंजी लाल शाह से 20 हजार रुपए देकर खरीद लिया और एक धरोहर के रूप में वन विभाग के सुपुर्द कर दिया. तब से लेकर आज तक यह बंगला वन विभाग के पास है. वन विभाग ने जिम कॉर्बेट की अमूल्य धरोहर को आज एक संग्राहलय में तब्दील कर दिया है. हजारों की तादाद में देश-विदेश से सैलानी जिम कॉर्बेट से जुड़ी यादों को देखने के लिए आते हैं.
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आखिर जिम कॉर्बेट क्यों हैं पूरी दुनिया में इतने चर्चित?: इस सवाल का जवाब जानने के लिए जिम कॉर्बेट के व्यक्तित्व में झांकना पड़ेगा. जिम कॉर्बेट एक आसाधारण और बेहद साहसिक नाम है. उनकी वीरता के कारनामे हैरत में डालने वाले हैं. जिम कॉर्बेट एक महान शिकारी थे. उनको तत्कालीन अंग्रेज सरकार आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाती थी. गढ़वाल और कुमाऊं में उस वक्त आदमखोर बाघ और गुलदार ने आतंक मचा रखा था. उनके खात्मे का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है. 1907 में चम्पावत शहर में एक आदमखोर ने 436 लोगों को अपना निवाला बना लिया था. तब जिम कॉर्बेट ने ही लोगों को आदमखोर के आतंक से मुक्त कराया था. जिम ने 1910 में मुक्तेश्वर में जिस पहले तेंदुए को मारा था उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था. जबकि दूसरे तेंदुए ने 125 लोगों को मौत के घाट उतारा था. उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था. जिम कॉर्बेट ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक के बाद एक सभी आदमखोरों को मौत की नींद सुला दिया था.

जीवों के प्रति बढ़ गया था जिम कॉर्बेट का स्नेह: जिम कॉर्बेट का नाम महान शिकारियों में जाना जाने लगा. कई आदमखोरों का शिकार करने के बाद जिम के मन में जीवों के प्रति प्रेम बढ़ गया. हृदय परिवर्तन होने के कारण जिम कॉर्बेट ने बाघों के संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया. फिर उसके बाद जिम कॉर्बेट ने कभी बाघ या अन्य जानवरों को मारने के लिए बंदूक नहीं उठाई. इसके अलावा उन्होंने सामाजिक कार्यों से लोगों की मदद की. जिस कारण उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1955 में राष्ट्रीय उद्यान राम गंगा नेशनल पार्क का नाम बदल कर कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया. ये आज भी विश्व में बाघों की राजधानी के रूप में जाना जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में सैलानी देश-विदेश से आते हैं.

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