देहरादून: उत्तराखंड हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर के डिनोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि संतुलित विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण का संतुलन बनाये रखना जरूरी है.
खंडपीठ ने एनएचएआई (National Highways Authority of India) से पूछा कि दिल्ली-देहरादून हाईवे के बीच रहे पेड़ों को बचाने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं? खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से भी कहा है कि वह कोर्ट को बताएं कि किस तरीके से 2500 साल के वृक्ष कटने से दून को अक्षम्य क्षति होगी और क्या इस क्षति की भरपाई अधिक वृक्षारोपण करके नहीं की जा सकती? मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त की तिथि नियत की है.
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मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. देहरादून निवासी रीनू पाल ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फारेस्ट को डिनोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया था.
बैठक में कहा गया था कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डिनोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं, लिहाजा इसे डिनोटिफाइड करना अति आवश्यक है. इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता द्वारा नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी.
कोर्ट ने सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर रोक लगा रखी है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है और यह वन्यजीव बोर्ड द्वारा भी डिनोटिफाइड किया गया क्षेत्र है. उसके बाद भी बोर्ड इसे डिनोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकती है? जबकि एलिफेंट इस क्षेत्र से नेपाल तक जाते हैं.
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क्या है मामला: शिवालिक एलिफेंट रिजर्व उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभ्यारण्य है. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां एशियाई हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे एलिफेंट रिजर्व घोषित किया था. प्रदेश के 17 वन प्रभागों में से 14 प्रभाग इस रिजर्व में शामिल हैं.
प्रदेश सरकार के मुताबिक इस शिवालिक रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अधिकतर क्षेत्र अब भी संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है. दरअसल, 24 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया यानि एलिफेंट रिजर्व को डिनोटिफाइड कर दिया गया. ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि इस जगह से तमाम बड़े प्रोजेक्ट होकर गुजरने थे. वहीं, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के रास्ते में भी ये एलिफेंट रिजर्व आ रहा था.
क्या होता है नोटिफाई/डि-नोटिफाई करना: नोटिफाई करने का मतलब होता है कि किसी जमीन को सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेना या आरक्षित कर लेना, ताकि सरकारी निर्देश के मुताबिक ही उस जमीन पर काम हो सके. 2002 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया. 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिजर्व के लिए नोटिफाड कर दिया. अब 2020 में बीजेपी सरकार ने इस जमीन को डिनोटिफाइड कर दिया यानि जमीन पर विकास कार्यों के लिए इसे खुला छोड़ दिया गया.