हल्द्वानी:नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों में पूजा की जा रही है. मां भगवती की आराधना के लिए घरों में जहां कलश स्थापना की गई है वहीं, मंदिरों में श्रद्धालु मां भगवती का आराधना कर परिवार की सुख-शांति की कामना कर रहे हैं. मान्यता है कि मां शीतला की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं, शांति, सेहत और शीतलता प्रदान होती है.
कुमाऊं के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर मां शीतला देवी का मंदिर है जो अपने आप में विशेष महत्व रखता है. नैनीताल जिले के काठगोदाम के रानीबाग स्थित ऊंची पहाड़ी पर स्थित मां शीतला देवी का पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है. वैसे तो मां शीतला देवी के मंदिर में रोजाना श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रों के समय में इस मंदिर की और महत्वता बढ़ जाती है. नवरात्रों में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच मां शीतला का आराधना कर अपनी परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं.
नवरात्रि में बढ़ जाता है माता शीतला देवी का महत्व. क्या है मान्यता मां शीतला की, कैसे हुई मंदिर की स्थापना
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि साल 1982 के दौर में हल्द्वानी से अल्मोड़ा, बदरीनाथ, केदारनाथ और जागेश्वर धाम जाने के लिए यात्री काठगोदाम रानीबाग होते हुए पैदल और खच्चरों के माध्यम से यात्रा करते थे. उस समय कोई वाहन नहीं हुआ हुआ करता था. पहाड़ को जाने वाले श्रद्धालु और यात्री शीतला हॉट में रात्रि विश्राम करते थे. मंदिर के पीछे एक छोटा सा हाट बाजार लगता था जिसे तत्कालीन चंद्र वंश के राजा द्वारा लगाया जाता था.
वहीं, वर्ष 1992 में जब भीमताल क्षेत्र के पांडे गांव के लोग अपने गांव में मां शीतला देवी की मूर्ति स्थापना करने के लिए बनारस से मां शीतला देवी की मूर्ति लेकर हरिद्वार जाकर मूर्ति को स्नान कराने के बाद ग्रामीण भीमताल पांडे गांव ले जा रहे थे, तभी रात होने की वजह से ग्रामीणों ने देवी की मूर्ति को विश्राम के लिए काठगोदाम स्थित शीतला हाट के गुलाब भाटी में रखा. इस दौरान ग्रामीणों ने मां शीतला देवी की मूर्ति को सेमल और बेल के पेड़ के नीचे विश्राम के लिए रख दिया.
बताया जाता है कि सुबह ग्रामीण गांव जाने के लिए उठे तो मूर्ति को उठाने की कोशिश की तो मूर्ति नहीं उठ पाई. इस दौरान एक ग्रामीण ने कहा कि रात में मां शीतला देवी उसके सपनों में आई थी और कहा कि वह उनकी मूर्ति को यहीं पर स्थापना की जाए. क्योंकि वह अब यहां से आगे नहीं जाएंगी. जिसके बाद पांडे गांव के लोगों ने मां शीतला देवी की मूर्ति को वहीं पर स्थापना कर दी. तब से यह आस्था का केंद्र बन गया और पांडे गांव के लोग आकर अपने देवी मां शीतला देवी को यहीं पर आराधना करने लगे. यही नहीं मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने भी इसी स्थान पर तपस्या किया था. जिसके बाद से यहां पर मार्कंडेय कुंडली बना जो आज भी उस कुंड में हमेशा स्वच्छ जल भरा रहता है.
मंदिर के पुजारी ने चंद्रमोहन नवाई बताया कि महाशक्ति स्वरूप मां शीतला देवी सर्वरोगनाशक है. मां शीतला देवी को स्वच्छता का देवी भी कहा जाता है. स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गदर्भ है, मां शीतला देवी अपने हाथों में सूप, कलश, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती है. चेचक आदि रोगों की देवी भी शीतला देवी को ही कहा जाता है. मां शीतला देवी की आराधना करने से सभी तरह के रोगों से निवारण के साथ मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. नवरात्रों में खासकर मां शीतला देवी के मंदिर का विश्व से ही महत्व है मां शीतला की आराधना के लिए उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों के लोग भी यहां पहुंचते हैं और मां शीतला का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.