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उत्तराखंड में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध को लेकर HC में सुनवाई, कोर्ट ने जिलाधिकारियों से मांगा जवाब

कोर्ट की खंडपीठ ने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज, फॉरेस्टर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट सहित मंडी बाईपास रोड पर फैले कूड़े को लेकर नगर निगम कमिश्नर को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के साथ ही 28 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा है.

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Published : Aug 3, 2022, 5:43 PM IST

नैनीताल:उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध के मामले पर दायर जनहित याचिका में सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने 13 जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा अभी तक प्रगति रिपोर्ट पेश नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उन्हें प्रगति रिपोर्ट पेश करने के लिए अतरिक्त समय दिया है. वहीं, पूर्व में कोर्ट ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिए थे, उनके जिलों में फैले कूड़े का निस्तारण करें और प्रगति रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें. जो आज तक किसी भी जिला अधिकारियों ने पेश नहीं की है.

वहीं, कोर्ट की खंडपीठ ने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज, फॉरेस्टर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट सहित मंडी बाईपास रोड पर फैले कूड़े को लेकर नगर निगम कमिश्नर को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के साथ ही 28 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि क्यों न आपके के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाय. उधर, कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि कांवड़ मेले के दौरान वहां फैले कूड़े को लेकर अभी तक क्या कदम उठाए हैं.

पढ़ें-राज्य में बंद होंगे सिंगल यूज प्लास्टिक मैन्युफेक्चरिंग उद्योग, पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार

साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि राज्य में पर्वतारोहियों के लिए 30 चोटियां खोली गयी हैं, वहां साफ-सफाई और कूड़ा निस्तारण की क्या व्यवस्था की गई है. इसके अलावा कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य प्रदूषण बोर्ड से सभी चोटियों का पर्यावरणीय जांच कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है. आज इन मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई.

इस मामले के अनुसार अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी. परन्तु, इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है.

2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे. जिसमें उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे. अगर वह नहीं ले जाते हैं तो सम्बंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य फंड देंगे. जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें. लेकिन, उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है, पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है.

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