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नैनीताल HC में सिंगल यूज प्लास्टिक पर दायर याचिका पर सुनवाई, दिए ये 6 अहम निर्देश - सिंगल यूज प्लास्टिक मामले पर दायर जनहित याचिका

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सिंगल यूज प्लास्टिक के मामले पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को 6 अहम निर्देश दिए हैं. मामले की अगली सुनवाई 5 सप्ताह बाद होगी.

Uttarakhand High Court
उत्तराखंड हाईकोर्ट

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Published : Jul 7, 2022, 4:02 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सिंगल यूज प्लास्टिक के मामले पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने कई निर्देश जारी किए हैं. जो इस प्रकार हैं.

  • प्लास्टिक में अपने उत्पाद बेचने वाले उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता, विक्रेताओं को दस दिन के भीतर अपना रजिस्ट्रेशन उत्तराखंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में कराने के निर्देश दिए है.
  • अगर ये अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं तो सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि उनके उत्पादों की उत्तराखंड में बिक्री पर रोक लगाए.
  • तीन सप्ताह के भीतर पूरे प्लास्टिक कचरे का निस्तारण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
  • उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेता यह सुनिश्चित करें कि खाली प्लास्टिक की बोतलें, चिप्स के रैपर आदि को वापस ले जाएं. अगर वापस नहीं ले जाते हैं तो उसके बदले नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायतों व अन्य को फंड दें. जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें.
  • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से इसकी मॉनिटरिंग करने को कहा है.
  • राज्य सरकार को प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभाव के प्रचार प्रसार करने को कहा है.

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वहीं, इस मामले में खंडपीठ ने सभी पक्षकारों से चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 5 सप्ताह बाद की तिथि नियत की है. मामले के मुताबिक, अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई थी. परंतु इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है.

2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे जिसमें उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे. अगर नहीं ले जाते है तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फंड देंगे. इससे वे इसका निस्तारण कर सकें. परंतु उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए है और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है.

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