नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुमाऊं विश्वविद्यालय के वीसी के पद को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई हेतु एक अक्टूबर की तिथि नियत की है.
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खण्डपीठ में हुई. मामले के अनुसार देहरादून निवासी रविंद्र जुगरान ने याचिका दायर कर कहा है कि कुमाऊं विवि के वीसी प्रोफेसर एनके जोशी इस पद के लिए निर्धारित योग्यता और अर्हता पूरी नहीं रखते हैं.
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रविंद्र जुगरान का आरोप है कि जोशी ने वीसी पद के आवेदन पत्र के साथ संलग्न बायोडाटा में गलत और भ्रामक जानकारियां दर्शाई हैं. वीसी के पद पर किसी व्यक्ति की तैनाती विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और यूपी यूनिवर्सिटीज एक्ट के अनुपरूप होनी चाहिए. इसके लिए किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर 10 वर्ष का अनुभव या किसी शोध संस्थान या अकादमिक प्रशासनिक संस्थान में समान पद का अनुभव होना चाहिए.
इस पद पर नियुक्ति के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अंर्तगत पहले कुलाधिपति योग्य उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित करते हैं. इसके बाद एक सर्च कमेटी का गठन किया जाता है. ये सर्च कमेटी योग्य उम्मीदवारों में से तीन अभ्यर्थियों का चयन करती है. बाद में राज्यपाल उन तीन अभ्यर्थियों में से एक को वीसी के रूप में नामित करता है.
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याचिका में यह भी कहा गया है कि उनकी शिक्षा संबधी अभिलेख भ्रामक हैं. उन्होंने एमएससी भौतिक विज्ञान से किया है और पीएचडी वन विज्ञान विषय से और प्रोफेसरी कम्प्यूटर साइंस विषय में की है. वह किसी भी राजकीय विश्वविद्यालय या संस्था में कभी भी प्रोफेसर के पद पर नहीं रहे. इसलिए वह कुलपति के लिए निर्धारित योग्यता और अर्हता पूरी नहीं रखते हैं. सर्च कमेटी द्वारा उनका चयन नियमों के विरुद्ध जाकर किया गया है. लिहाजा उनको वीसी के पद से हटाया जाये.