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उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों के मामला, 11 दिसंबर को सचिवालय रखेगा अपना पक्ष - उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय न्यूज

Employees dismissed from Assembly Secretariat नैनीताल हाईकोर्ट में आज विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में सुनवाई हुई. जिसके बाद कोर्ट ने विपक्षी सचिवालय का पक्ष सुनने के लिए 11 दिसंबर की तारीख तय की है. पढ़ें पूरी खबर..

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 7, 2023, 8:52 PM IST

नैनीताल:उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में सुनवाई की. आज मामले में बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामथ, उच्च न्यायालय के पूर्व महाधिवक्ता वीवीएस नेगी और अधिवक्ता रवींद्र विष्ठ ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष कोर्ट के सामने रखा. न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद विपक्षी सचिवालय का पक्ष सुनने के लिए 11 दिसंबर की तारीख निर्धारित की है.

कर्मचारियों को निकालना नियम के खिलाफ:कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें बिना नोटिस दिए कार्य से हटा दिया गया, जबकि उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया जाना था. एक साथ इतने कर्मचारियों को निकालना विधानसभा नियमावली के विरुद्ध है. पूर्व में भी एक जनहित याचिका में उन्हें कोर्ट से राहत मिल चुकी है. जिस पर कोर्ट ने सचिवालय से आगामी नियत तिथि को अपना पक्ष रखने को कहा है.

मामले के अनुसार अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ , कुलदीप सिंह और 102 अन्य ने एकलपीठ को चुनौती दी है. याचिकाओं में कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 और 29 सितंबर 2022 को समाप्त कर दी गई थी. बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार और किस कारण से हटाया गया, इसका कहीं उल्लेख नहीं किया गया है, जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है. एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है. यह आदेश विधि विरुद्ध है.

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विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां:विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित किया जा चुका है. याचिकाओं में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई, लेकिन उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया गया और हटा दिया गया. पूर्व में उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी. जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है, जबकि नियमानुसार छः माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था.

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