नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के जंगलों में लगने वाली आग का स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की. हाईकोर्ट ने आज राज्य सरकार को अहम दिशा-निर्देश जारी करते हुए, वन विभाग में खाली पड़े 65 प्रतिशत पदों को 6 माह में भरने व ग्राम पंचायतों को मजबूत करने के साथ-साथ वर्ष भर जंगलों की निगरानी करने का आदेश दिया.
वहीं राज्य सरकार ने कोर्ट में जवाब पेश कर कहा कि वन विभाग में खाली पड़े पदोन्नति के फॉरेस्ट गार्ड के पदों पर शैक्षणिक योग्यता घटाकर हाईस्कूल कर दी है, ताकि विभाग में खाली पड़े फॉरेस्ट गार्ड के पदों को भरा जा सके. सरकार द्वारा कोर्ट को यह भी बताया गया कि बाकी खाली पड़े 2 हजार पदों पर भर्ती प्रकिया जारी है. जिसपर कोर्ट ने राज्य सरकार से 4 सितंबर तक विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई.
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मामले के अनुसार कोर्ट ने 'इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ' से संबंधित मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वतः संज्ञान 2018 में लिया था. जंगलों को आग से बचाने के लिए कोर्ट ने पूर्व में कई दिशा-निर्देश जारी किए थे. लेकिन इस साल और अधिक आग लगने कारण यह मामला दोबारा से उजगार हुआ.
इस साल अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व राजीव बिष्ठ ने कोर्ट के सम्मुख प्रदेश के जंगलों में लग रही आग के संबंधित में कोर्ट को अवगत कराया. उनका कहना था कि प्रदेश के कई जंगल आग से जलते हैं और प्रदेश सरकार इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है. जबकि हाइकोर्ट ने 2016 में जंगलों को आग से बचाने के लिए भी गाइड लाइन जारी करी थी. कोर्ट ने गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित करने को कहा था जिस पर आज तक अमल नहीं किया गया.
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सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग कर रही है, उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाएं. कोर्ट ने विभिन्न पेपरों में आग को लेकर छपी खबरों का गंभीरता से संज्ञान लिया था. कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि इसको बुझाने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा रहे हैं? कोर्ट को अवगत कराएं.