हल्द्वानी: आषाढ़ मास होने वाली हरिशयनी एकादशी इस बार 10 जुलाई आज मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता अनुसार हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद जागते हैं. इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता हैं.
4 माह की योग निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु: धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. जिसके चलते सभी तरह के शुभ मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं. चातुर्मास में प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए इस समय मांगलिक कार्यों को करने की मनाही होती है. ऐसे में चातुर्मास के समय 4 महीने तक तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. मान्यता है कि तुलसी में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का वास होता हैं. चातुर्मास में सभी संत समाज भगवान का भजन करते हैं.
देवशयनी एकादशी करने पूर्ण होती है मनोकामना: ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि शनिवार 9 जुलाई को शाम 4:40 से प्रारंभ होकर 10 जुलाई दोपहर 2:14 तक रहेगा. उदया तिथि के कारण हरिशयनी एकादशी का व्रत 10 जुलाई को रखा जाएगा. जबकि व्रत का परायण 11 जुलाई सुबह सूर्योदय के साथ समाप्त होगा. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन का व्रत करने से सभी मनोकामना पूरी होती है. इस दिन किए गए पूजा और दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
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इस दौरान सभी शुभ कार्य बंद: ज्योतिषी अनुसार देवशयनी एकादशी के बाद 4 महीने तक सूर्य चंद्रमा और प्रकृति का तेजस कम हो जाता है. इसलिए कहा जाता है कि देवशनय हो गए हैं, जिससे शुभ शक्तियां कमजोर हो जाती हैं. चतुर्मास में 4 महीने तक कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. जब चतुर्मास के बाद भगवान विष्णु जागते हैं तो उसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है. उसके साथ ही सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. हरिशयनी एकादशी व्रत करने और इस दिन भगवान श्री हरि की विधि विधान से व्रत और पूजा करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है. साथ ही सभी संकट दूर होते हैं. सभी तरह की मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है.
राजा मांधाता ने की तपस्या: मान्यता है कि एक राजा मांधाता के राज्य में बरसात नहीं हो रही थी और वहां पर अकाल पड़ने की स्थिति आ गई. ऐसे में राजा ने भगवान विष्णु की विधि विधान से आराधना की, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है. जिसके फल स्वरुप भगवान विष्णु और राजा इंद्र ने राजा के तपस्या से प्रसन्न होकर बरसात की. जिससे राजा और उसके प्रजा में सभी तरह के कष्ट दूर हो गए.
ज्योतिषाचार्य अनुसार 4 महीनों तक बाढ़, आपदा और भूस्खलन जैसी स्थिति बनी रहती है. ऐसे में 4 महीनों तक सभी संत भ्रमण से आकर चार महीनों तक भगवान विष्णु की आराधना करते हैं. 4 महीनों तक तुलसी के पौधे की की सुबह-शाम विधि विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.