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देवी मां को जलसैलाब से साक्षात भैरव ने बचाया था, फिर कहलायी मां गर्जिया देवी

आज शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन हम जानेंगे कुमाऊं के ही एक ऐसे मंदिर की कथा, जो बेहद रोचक है. ऐसा कहा जाता है कि जलसैलाब में बह रहे इस देवी मां की मूर्ति को साक्षात भैरव देव ने रोका था. भैरव ने इस देवी को अपनी बहन का दर्जा भी दिया.

गर्जिया देवी मंदिर

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Published : Oct 1, 2019, 6:52 AM IST

रामनगर:गर्जिया देवी मन्दिर या 'गिरिजा देवी मन्दिर' माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है. ये मंदिर श्रद्धा एवं विश्वास का अद्भुत उदाहरण है. रामनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूर गर्जिया मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है. भगवान शिव की अर्धांगिनी मां पार्वती का एक नाम 'गिरिजा' भी है. गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें इस नाम से बुलाया जाता है.

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इतिहास
पुरातत्ववेत्ताओं का कथन है कि कूर्मांचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास थी, जहां वर्तमान रामनगर बसा हुआ है. कोसी नदी के किनारे बसी इसी नगरी का नाम तब 'वैराट पत्तन' या 'वैराट नगर' था. कत्यूरी राजाओं के आने के पहले यहां कुरु राजवंश के राजाओं का राज था, जो प्राचीन इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के साम्राज्य की छत्रछाया में रहते थे. ढिकुली, गर्जिया क्षेत्र का लगभग 3000 वर्षों का अपना इतिहास रहा है.
गर्जिया नामक शक्ति स्थल 1940 से पहले उपेक्षित अवस्था में था, ऐसी मान्यता थी कि गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था. मंदिर को टीले के साथ बहते हुए आता देखकर भैरव देव ने उसे रोकने का प्रयास किया था. और कहा था "थि रौ, बैणा थि रौ" अर्थात् 'ठहरो, बहन ठहरो', यहां पर मेरे साथ निवास करो. तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही हैं.

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धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि वर्ष 1940 से पूर्व ये क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था. सबसे पहले जंगल विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों और स्थानीय लोगों ने टीले पर मूर्तियों को देखा था और उन्हें माता जगजननी का नाम दिया. सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहती कोसी नदी की तेज धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्तजन इस स्थान पर मां के दर्शनों के लिये आने लगे. जंगल के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी यहां पर आए थे. कहा जाता है कि टीले के पास मां दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था. कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुए भी लोगों द्वारा देखा गया.

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यहां पर भक्त जटा नारियल, लाल वस्त्र, सिन्दूर, धूप, दीप चढ़ाकर मां की वन्दना करते हैं. नव-विवाहित स्त्रियां यहां आकर अटल सुहाग की कामना करती हैं. निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिये माता के चरणों में झोली फैलाते हैं. गंगा दशहरा, नव दुर्गा, शिवरात्रि, उत्तरायणी, बसंत पंचमी में भी इस मंदिर में काफी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. कहा जाता है कि भैरव की पूजा के बाद ही मां गिरिजा की पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है.

(ये खबर पौराणिक कथाओं पर आधारित है. ईटीवी भारत इन तथ्यों को प्रमाणित नहीं करता है.)

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