रामनगर: हजारों साल पहले एक मिट्टी का बड़ा सा टीला कोसी नदी के साथ बहकर आता है, और बटुक भैरव देवता उस टीले में विराजमान गिरिजा माता को देखकर उन्हें रोकते हुए कहते हैं, देवी ठहरो और यहां मेरे साथ निवास करो. हजारों साल पहले बटुक भैरव द्वारा रुका हुआ यह टीला आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है.
जहां गिरिराज हिमालय की पुत्री गिरिजा देवी निवास करती है. जिन्हें हम माता पार्वती का एक दूसरा रूप भी कहते हैं. मूल पहचान है गर्जिया देवी की. संपूर्ण उत्तराखंड में गिरिजा माता को गर्जिया देवी के नाम से भी जाना जाता है. जहां इस आस्था और विश्वास के मंदिर में भक्त जनों के कष्टों का निवारण किया जाता है. गिरजा देवी का यह मंदिर रामनगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर रामनगर जिला नैनीताल के अंदर आता है, और नैनीताल से रामनगर की दूरी लगभग 65 किलोमीटर की है.
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जानकार बताते हैं कि 19वीं सदी में गर्जिया माता का अस्तित्व आज के समय जैसा नहीं था. बल्कि यहां पर वीरान घना जंगल हुआ करता था. वहीं, साल 1950 में श्री 108 महादेव गिरी बाबा यहां पहुंचे, तो उनके शिष्य ने यहां एक झोपड़ी बनाई थी. जिसमें उनके शिष्य ने गिरजा मां की उपासना की. महादेव गिरी एक नागा बाबा और तांत्रिक थे. जिन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थी. यही नागा बाबा एक जमाने में जापान के फौज के सिपाई थे, और इन्हीं नागा बाबा ने राजस्थान से भैरव, गणेश और तीन महादेवी की मूर्तियों को लाकर यहां स्थापना किया. जानकर हैरानी होगी कि जब नागाा बाबा जब मूर्ति स्थापना कर रहे थे, उसी समय एक शेर ने अत्यंत तेज गर्जना की. जिस वजह से उन्होंने इसे एक संकेत मानकर इस देवी का नाम गर्जिया देवी रख दिया. मूर्ति स्थापना होने के बाद प्राचीन कुटिया को हटाकर पक्की कुटिया बनाई गई. टीले को काटकर सीढ़ियां बनाई गई.